QUESTION & ANSWER
Upasana Ke Kshan 06
Sixth Discourse from the series of 12 discourses - Upasana Ke Kshan by Osho.
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न सुख है, न इतना दुख है; और जितना है वह बहुत ध्यान देने योग्य नहीं है। लेकिन हम उसे बहुत बड़ा करके देखते हैं। दोनों को जाग कर देखिए, तो दोनों खत्म हो जाते हैं।
प्रश्न:
जागना ही सबसे बड़ी चीज है।
हां।
प्रश्न: पहला ही आपका प्रवचन मैंने सुना, वह राजकुमार वाली बात थी, तलवार से, लकड़ी की तलवार और फिर लोहे की। वह बहुत बढ़िया इंस्टेंस है, वह पहला प्रवचन। वह बिलकुल कैट जैसा दिमाग, वह कैसा चेतन है! होश रहे, नहीं तो किसी भी वक्त मार पड़ सकती है--हर वक्त चेतन रूप है, हर वक्त चेतन है। आज भी यही बात का और सिलसिला था, लेकिन यही बात थी।
...और लाओत्सु एक जंगल में एक पहाड़ी के पास बैठा है, धूल में बैठा हुआ है। कनफ्यूशियस मिलने आया। तो कनफ्यूशियस से उसने यह भी नहीं कहा कि बैठ जा कनफ्यूशियस। तो कनफ्यूशियस ने कहा: कम से कम इतना शिष्टाचार तो अब रखिए कि मुझसे कहिए कि मैं बैठ जाऊं। उसने कहा कि मैं समझता था कि तू बूढ़ा हो गया तुझे अक्ल आ गई होगी, तू अभी ये रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर और नवाब बना हुआ है। लाओत्सु ने उससे कहा, मैं समझता था तू कि अब बूढ़ा हो गया, तुझे कुछ अक्ल आ गई होगी, और अभी तू ये अपने मंत्री-वंत्री के कपड़े पहन कर अभी तक बच्चा बना हुआ है। इसलिए फिर मैंने कहा, क्या कहना इससे बैठना।
फिर वह कनफ्यूशियस कहने लगा कि आपका क्या खयाल है, क्या नियम होने चाहिए?
तो उसने कहा कि जब तक नियम होंगे, तब तक आदमी झूठा होगा। हम तो उस आदमी को चाहते हैं जिसका कोई नियम नहीं, जो स्वभाव है।
(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं है।)
वह वैसा ही है जैसा है। उसके रिफरेंसेस फिर बहुत हैं। च्वांगत्सु उसका शिष्य, उसके बहुत रिफरेंस हैं। और फिर तो पूरे चीन में फैले हुए हैं। और सच बात यह है कि इन सबके हिस्टारिक होने का कोई मतलब नहीं है इन सारी बातों का। लेकिन वह ऐसा फिगर है लाओत्सु कि फिर उसके बाबत कथाएं जोड़ी जाती रहीं, जोड़ी जाती रहीं। और वह फिर एक, जिसको कहें मिथ बन गया। वह उसका अब कोई यह सवाल नहीं है। यह कोई सवाल नहीं है!
प्रश्न:
कितने साल पहले हुए?
लाओत्सु हुआ कोई, वह उसी वक्त जब बुद्ध और महावीर थे, पच्चीस सौ वर्ष पहले। वह उस वक्त दुनिया में, सारी दुनिया में कुछ बड़े अदभुत लोग हुए, एक ही साथ। और मेरा ऐसा खयाल है कि यह भी, जैसे कि समुद्र में लहरें उठती न, तो कुछ छोटी लहरें, कोई एक बड़ी लहर उठती तो इस कोने से उस कोने तक। यहएक लहर है। ऐसी ह्यूमन कांशसनेस में कभी लहरें उठती हैं। तो एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक, सब जगह पीक छू लेती है। तो वहां सुकरात हुआ, प्लेटो, अरस्तू, उसी वक्त। उधर महावीर, बुद्ध। और महावीर-बुद्ध के वक्त छह और अदभुत लोग थे हिंदुस्तान में, जो इसी कीमत के लोग थे। लेकिन वे इतने अदभुत थे, उन्होंने कोई संप्रदाय नहीं बनाए, इसलिए खो गए। इसी कीमत के। बल्कि कई मामलों में इनसे भी अदभुत रहे होंगे।
प्रबुद्ध कात्यायन एक व्यक्ति था, अजित केशकंबली एक व्यक्ति था, मक्खली गोशाल। गोशालक का तो बहुत उल्लेख महावीर के उसमें आता है। ये आठ लोग थे एक साथ, और बिहार में ही थे आठों के आठों। और उधर चीन में लाओत्सु, कनफ्यूशियस, च्वांगत्सु, वह सारे लोग थे। और यह सारी दुनिया में बेल्ट की तरह एक लहर उठी। और उस पीक पर जिन लोगों ने छुआ है, उनका फिर मुकाबला नहीं हुआ पीछे। वे बहुत अदभुत लोग हुए।
तो ह्यूमन कांशसनेस में कभी लहरें आती हैं। हमको ऐसा लगता न ऊपर से देखने में कि मैं अलग, आप अलग, हम अलग, मगर हमारी कांशसनेस इतनी इकट्ठी है कि जब लहर आती है--मुझमें जब लहर आएगी, तो मेरे साथ बहुत से लोगों को छू लेगी, जिनका हमें पता भी नहीं चलेगा।
प्रश्न:
भगवान, ऐसा होता है कि पूर्णता पाने से लोग तुमको--जैसा आपने बताया कि मक्खली गोशाल ने कुछ नहीं बताया। वैसा कोई ने बताया भी न हो, ऐसा भी होता है, उसका बताने का मन भी नहीं होता?
अनेक लोग। अनेक लोग। अनेक लोग। असल में बताना एक बात है और जानना बिलकुल दूसरी बात है।
बुद्ध से किसी ने पूछा, बुद्ध के साथ दस हजार भिक्षु चलते थे। किसी ने बुद्ध से पूछा कि आप इतने दिन से सिखा रहे हैं तीस वर्षों से, ये दस हजार भिक्षु सुनते हैं, इनमें से कुछ आप जैसे हुए कि नहीं?
बुद्ध ने कहा: बहुत।
तो उसने कहा: लेकिन उनका कोई पता नहीं चलता।
तो बुद्ध ने कहा: वे चुप हैं, मैं बोलता हूं।
और यही फर्क जैनों में--तीर्थंकर और केवली का फर्क है। तीर्थंकर भी केवली है, लेकिन तीर्थंकर टीचर भी है साथ में। और केवली सिर्फ केवली है, वह कुछ बोलता नहीं है, वह टीचर नहीं है। बस इतना ही फर्क है। महावीर जैसे बहुत लोग हुए हैं, लेकिन महावीर तीर्थंकर हैं।
प्रश्न:
अभी भी भारत में ऐसे लोग बहुत होंगे?
हमेशा हैं। लेकिन होता क्या है न, कि अब जैसे कि एक अगर मीरा जैसी किसी मैया को ज्ञान मिल जाए, तो वह गाएगी, नाचेगी और प्रकट करेगी, क्योंकि वह जो ट्रैनिंग है उसके माइंड की वह नाचने-गाने की है, वह ज्ञान उसका नाच-गाने से ही निकलेगा पीछे।
अगर कोई आदमी टीचर है, और माइंड उसका टीचर का है, और अगर वह ज्ञान को उपलब्ध हो जाए, तो वह ज्ञान टीचिंग्स से बहेगा। लेकिन एक आदमी टीचर नहीं है, एक आदमी नाचने वाला नहीं है, एक आदमी कवि नहीं है और वह ज्ञान को उपलब्ध हो जाए, तो उसका ज्ञान रुका रह जाए, उसके बहने का कोई निकास नहीं है। तो अनेक लोग चुप रह जाते हैं।
प्रश्न:
व्यक्त करने का मन नहीं है उनका?
नहीं-नहीं, मन का सवाल नहीं है, व्यक्त करने का माध्यम नहीं होता। शक्ति आ जाएगी, वह सब उसका मानसिक बल है, अपना है।
प्रश्न:
शक्ति आ जाती है इसका माने यह है कि कल्पना के भगवान हुए?
भगवान का कुछ लेना-देना नहीं है उसका। वह तुममें पैदा हो जाएगी, बिलकुल पैदा हो जाएगी। और उसी से ऐसा लगने लगेगा कि भगवान से शक्ति मिल रही है हमको। वह तुम्हारी अपनी शक्ति है, तुम्हारा अपना विल फोर्स है।
प्रश्न:
अच्छा, यह चारित्र्य के बारे में इतना कुछ कहा जाता है, उसके बारे में आपकी डेफिनिशन क्या है? कैरेक्टर स्टीक। संयम करना--उसका नाम चारित्र्य है? किसी औरत के सामने नहीं देखना--उसका नाम चारित्र्य है? अलग-अलग लोग अलग-अलग बात करते हैं चारित्र्य के बारे में। उसके बारे में आपका क्या कहना है?
मेरी बात समझ लीजिए।
संयम करने को मैं चारित्र्य नहीं कहता हूं। और जो स्त्री के सामने देखने से डरता है वह चरित्रहीन है।
प्रश्न:
रामकृष्ण जी स्त्री को देखने में ही न करते हैं।
चरित्रहीनता है। चरित्रहीनता है। इतना भय किससे? इतना भय किस बात से?
प्रश्न:
क्योंकि आजकल अभी ऐसा ही किया जाता है न, क्योंकि ये लड़के-लड़कियां साथ में घूमते हैं, तो बोले कि भई... आपने कल उसकी बात बोली कि हमारे लोग नीचे चला जा रहा है। अपन ऊपर नहीं हैं, तो नीचे जाने की बात नहीं है न! आपने कल बोला न वह तो।
कोई नीचे नहीं जा रहा है।
(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं है।)
साइकोलॉजी है। साइकोलॉजी है। जागरूक आदमी जिस तरह से जीता है, वह चरित्र है; और सोया हुआ आदमी जिस तरह से जीता है, वह चरित्रहीनता है। जागरूक आदमी जो भी करेगा, वह चरित्र है।
इसलिए असली सवाल भीतर जागे हुए होने का है।
तो जागा हुआ आदमी न स्त्री से डरता है, न भागता है, न स्त्री का पीछा करता है। वह सोए हुए आदमी के दोनों लक्षण हैं--सोया हुआ आदमी या तो स्त्री का पीछा करेगा, और या स्त्री से भागेगा। वह दोनों हालत में स्त्री को मानता है।
प्रश्न:
अगर यहां हम ध्यान करते हैं, तो कभी-कभी प्रकाश के बिंदु ऐसे यूं चले आते दिखते हैं।
हां, बिलकुल आते हुए मालूम पड़ेंगे।
प्रश्न:
वह कल्पना है कि--वह क्या है प्रकाश के बिंदु?
नहीं, वह कल्पना भी नहीं है। वह कल्पना भी नहीं है। वह असल में, हमारी जो इंद्रियां हैं, उनके बहुत सूक्ष्म अनुभव संगृहीत होते हैं। जैसे, आंख के स्नायुओं में प्रकाश के सूक्ष्म अनुभव संगृहीत हो जाते हैं। तो जैसे पीछे के स्नायु रिलैक्स होंगे, वे सूक्ष्म बिंदु प्रकाश के वहां से रिलीज होंगे। कान के अनुभव, कान के, अब उसमें, एक तो कान यहां ऊपर दिखाई पड़ रहा है, यह असली कान नहीं है। असली कान तो भीतर का यंत्र है जो सूक्ष्म इंद्रिय है। उसमें ध्वनि के बहुत से अनुभव संगृहीत हैं। सूक्ष्मतम तरंगें संगृहीत हो गई हैं। तो जब वे रिलैक्स होंगी, तो बहुत ध्वनियां बजेंगी भीतर। जिसको कि साधु-संन्यासी समझते हैं कि अनहद नाद हो रहा है। कुछ नहीं हो रहा है। वे जो कान के सूक्ष्मतम संगृहीत अनुभव हैं, वे संगृहीत अनुभव रिलीज हो रहे हैं।
प्रश्न:
मैं आपसे यही बात करता हूं, मैं जब ध्यान करता हूं तो पीछे एक, जैसे कि एक कोई मशीन चल रही है, सीऽऽऽ वैसी एक आवाज चलती रहती है। कभी-कभी डिस्टर्बिंग होती है।
हूं-हूं, बस उसको सबको देखना है। प्रकाश के बिंदु हों, ध्वनियां हों, सुगंध आ सकती है।
प्रश्न:
सुगंध आ सकती है?
हां, वह तो नाक के अनुभव हैं सूक्ष्म। बहुत अदभुत सुगंधें आ सकती हैं।
प्रश्न:
कभी यूं बैठे हैं न, तो टेस्ट आ जाता है।
हां, वे तो जब जैसे इंद्रियां भीतर से रिलैक्स होना शुरू होती हैं, तो कई अनुभव रिलीज होते हैं। जिनका आपको पता भी नहीं कि ये अनुभव भी हमारे पास हैं। तो उन सबको देखना है। उसमें कुछ मूल्यवान नहीं है मामला। वह कुछ ऐसा नहीं है कि कोई बहुत ऊंचा। लेकिन एक बात तय है कि वह ध्यान गहरा जाता है तभी यह सब होना शुरू होता है।
प्रश्न:
बिंदु मैं देखता हूं और यह सोचता हूं तो वे काफी होते हैं।
हां, उनको बढ़ा कर देखें, शांति से देखते रहें। वे धीरे-धीरे, धीरे-धीरे विलीन हो जाएंगे।
प्रश्न:
मैं यह ध्वनि से तो इतना घबड़ा गया हूं कि वह आती रहती है।
जब वह आए, तो उसके प्रति जागरूक हों। उससे बहुत फायदा होगा। उससे बहुत फायदा होगा!
प्रश्न:
जैसे हम कुकर रखते हैं उसके ऊपर से सीऽऽऽ...
मैं समझ गया। सन्नाटे की आवाज आ रही है।
प्रश्न:
सिद्धियां होती हैं?
सब हो सकते हैं। सब मानसिकता है।
प्रश्न:
वह तो यह अंदर की...
बहुत अंदर की बातें नहीं हैं। बहुत अंदर की बातें तो नहीं हैं, लेकिन ऊपर की बातें भी नहीं हैं; बीच की बातें हैं। शरीर से आत्मा तक जाने का जो मार्ग है, वहां बीच में मन की बड़ी सूक्ष्म शक्तियां हैं, जिनका हमें पता नहीं है। जैसे ही मन शांत होता है, वे शक्तियां जगती हैं। अपने आप भी जग सकती हैं कभी। साधारणतः अपने आप नहीं जगती हैं। फ्रैंकली चेष्टा करें, तो जग सकती हैं।
जैसे कि शरीर है हमारा, हमें अंदाज नहीं है। राममूर्ति है, उसने शरीर की कुछ शक्तियां जगा ली हैं, जो हमारे शरीर में भी हैं। राममूर्ति के पास कोई विशेष शरीर नहीं है, शरीर तो यही है, स्ट्रक्चर यही है, सब मामला यही है। ये ही फेफड़े हैं, यही हार्ट है, ये ही हाथ हैं, ये ही पैर हैं। लेकिन निरंतर चेष्टा करके इन सबकी शक्तियां सूक्ष्मतम बढ़ा ली हैं। तो वह कार के नीचे लेट जाता है, छाती पर से कार निकल जाती है। और वह हाथी को छाती पर खड़ा कर सकता है। और वह ट्रेन के इंजन को भी पीछे पकड़ ले, तो आगे बढ़ना मुश्किल है। यह शरीर की सूक्ष्मतम शक्तियों का विकास है।
प्रश्न:
तो वह तो कसरत से किया होगा।
हां। तो इसी तरह माइंड की सूक्ष्म शक्तियों की कसरतें हैं, और उनसे सिद्धियां हो जाती हैं। माइंड की सूक्ष्म शक्तियों की कसरतें हैं।
प्रश्न:
यहां तक कि वह शरीर से बाहर निकल कर दूसरे शरीर में जाता है, ये सब बातें।
हां-हां, यह बिलकुल, इसमें जरा भी कठिनाई नहीं है। जरा भी कठिनाई नहीं है। बल्कि शरीर को राममूर्ति जैसा बनाना थोड़ा कठिन मामला है। क्योंकि शरीर बहुत स्थूल माध्यम है। उसके साथ ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। माइंड बहुत सूक्ष्म माध्यम है। उसके साथ कम मेहनत करनी पड़ती है।
प्रश्न:
पर यह चंचल भी इतना है न माइंड। मेहनत कम करनी पड़ती है, मगर माइंड चंचल बहुत है।
चंचल उसकी शक्ति है। चंचल होना उसकी शक्ति है। चंचल न हो, तो तुम बुद्धू हो गए।
प्रश्न:
मैं तो मानता हूं कि मन आरक्षण छोड़ता है, मन का तो यह शांत होना स्वभाव है शायद, ऐसा लगता है।
बिलकुल स्वभाव है।
प्रश्न:
क्योंकि आरक्षण छोड़ देता है।
और चंचलता उसकी शक्ति है। अगर वह चंचल न रहे, तो तुम डेड हो गए। ईडियट का चंचल नहीं रहता, पता है? जितना बुद्धिमान आदमी, उतना चंचल मन होता है। वह चंचलता तो उसकी गति है, डाइनामिज्म है उसके भीतर।
प्रश्न:
तो ये शक्तियां, जब चंचलता रुकती है, तब आ जाती होगी?
हां। चंचलता को रोक कर या चंचलता को एक ही बिंदु पर लगा कर केंद्रित करते हैं--वह चंचलता ही है--वह उसमें चंचलता में फर्क नहीं पड़ता।
प्रश्न:
अच्छा।
हां। फर्क इतना ही पड़ता है, जैसे कि एक आदमी इधर से कूद कर उधर गया, उधर से कूद कर उधर गया, एक आदमी कूदता फिर रहा है एक स्थान से दूसरे स्थान पर, और एक आदमी एक ही स्थान पर कूद रहा है। कूदना दोनों का जारी है। लेकिन एक आदमी एक ही स्थान पर कूद रहा है, कूदना जारी है, स्थान नहीं बदल रहा है, कूद रहा है, एक ही जगह खड़े होकर कूद रहा है। जिसको तुम एकाग्रता कहते हो, वह एकाग्रता नहीं है, वह चंचलता एक ही बिंदु पर है, माइंड एक ही जगह कूद रहा है।
जैसे कह रहा: राम, राम, राम, राम--माइंड का कूदना जारी है। अगर राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर ऐसा कहे, तो हमको लगेगा कि बदल रहा है। वह कहता, राम, राम, राम, तो हमको लग रहा बदल नहीं रहा। लेकिन बदल रहा है पूरे वक्त। एक राम से दूसरे राम पर जाने में उतनी ही छलांग है जितनी राम से बुद्ध पर जाने में, जंप है वह उतना ही है, गैप जो है वह उतना ही है। लेकिन वह एक ही शब्द की वजह से एक ही जगह कूद रहा है, जगह नहीं बदल रहा है, कुलान जारी है।
तो माइंड तो पूरे वक्त ही कूदता है। जब तक है, तब तक कूदता ही है। तो अगर उसको एक जगह कुदाया जाए, तो उस जगह की शक्तियां जगनी शुरू हो जाती हैं जिस जगह कूदा है। उसके सेंटर्स हैं सब, सारी शक्तियों के।...
प्रश्न:
जागना ही सबसे बड़ी चीज है।
हां।
प्रश्न: पहला ही आपका प्रवचन मैंने सुना, वह राजकुमार वाली बात थी, तलवार से, लकड़ी की तलवार और फिर लोहे की। वह बहुत बढ़िया इंस्टेंस है, वह पहला प्रवचन। वह बिलकुल कैट जैसा दिमाग, वह कैसा चेतन है! होश रहे, नहीं तो किसी भी वक्त मार पड़ सकती है--हर वक्त चेतन रूप है, हर वक्त चेतन है। आज भी यही बात का और सिलसिला था, लेकिन यही बात थी।
...और लाओत्सु एक जंगल में एक पहाड़ी के पास बैठा है, धूल में बैठा हुआ है। कनफ्यूशियस मिलने आया। तो कनफ्यूशियस से उसने यह भी नहीं कहा कि बैठ जा कनफ्यूशियस। तो कनफ्यूशियस ने कहा: कम से कम इतना शिष्टाचार तो अब रखिए कि मुझसे कहिए कि मैं बैठ जाऊं। उसने कहा कि मैं समझता था कि तू बूढ़ा हो गया तुझे अक्ल आ गई होगी, तू अभी ये रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर और नवाब बना हुआ है। लाओत्सु ने उससे कहा, मैं समझता था तू कि अब बूढ़ा हो गया, तुझे कुछ अक्ल आ गई होगी, और अभी तू ये अपने मंत्री-वंत्री के कपड़े पहन कर अभी तक बच्चा बना हुआ है। इसलिए फिर मैंने कहा, क्या कहना इससे बैठना।
फिर वह कनफ्यूशियस कहने लगा कि आपका क्या खयाल है, क्या नियम होने चाहिए?
तो उसने कहा कि जब तक नियम होंगे, तब तक आदमी झूठा होगा। हम तो उस आदमी को चाहते हैं जिसका कोई नियम नहीं, जो स्वभाव है।
(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं है।)
वह वैसा ही है जैसा है। उसके रिफरेंसेस फिर बहुत हैं। च्वांगत्सु उसका शिष्य, उसके बहुत रिफरेंस हैं। और फिर तो पूरे चीन में फैले हुए हैं। और सच बात यह है कि इन सबके हिस्टारिक होने का कोई मतलब नहीं है इन सारी बातों का। लेकिन वह ऐसा फिगर है लाओत्सु कि फिर उसके बाबत कथाएं जोड़ी जाती रहीं, जोड़ी जाती रहीं। और वह फिर एक, जिसको कहें मिथ बन गया। वह उसका अब कोई यह सवाल नहीं है। यह कोई सवाल नहीं है!
प्रश्न:
कितने साल पहले हुए?
लाओत्सु हुआ कोई, वह उसी वक्त जब बुद्ध और महावीर थे, पच्चीस सौ वर्ष पहले। वह उस वक्त दुनिया में, सारी दुनिया में कुछ बड़े अदभुत लोग हुए, एक ही साथ। और मेरा ऐसा खयाल है कि यह भी, जैसे कि समुद्र में लहरें उठती न, तो कुछ छोटी लहरें, कोई एक बड़ी लहर उठती तो इस कोने से उस कोने तक। यहएक लहर है। ऐसी ह्यूमन कांशसनेस में कभी लहरें उठती हैं। तो एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक, सब जगह पीक छू लेती है। तो वहां सुकरात हुआ, प्लेटो, अरस्तू, उसी वक्त। उधर महावीर, बुद्ध। और महावीर-बुद्ध के वक्त छह और अदभुत लोग थे हिंदुस्तान में, जो इसी कीमत के लोग थे। लेकिन वे इतने अदभुत थे, उन्होंने कोई संप्रदाय नहीं बनाए, इसलिए खो गए। इसी कीमत के। बल्कि कई मामलों में इनसे भी अदभुत रहे होंगे।
प्रबुद्ध कात्यायन एक व्यक्ति था, अजित केशकंबली एक व्यक्ति था, मक्खली गोशाल। गोशालक का तो बहुत उल्लेख महावीर के उसमें आता है। ये आठ लोग थे एक साथ, और बिहार में ही थे आठों के आठों। और उधर चीन में लाओत्सु, कनफ्यूशियस, च्वांगत्सु, वह सारे लोग थे। और यह सारी दुनिया में बेल्ट की तरह एक लहर उठी। और उस पीक पर जिन लोगों ने छुआ है, उनका फिर मुकाबला नहीं हुआ पीछे। वे बहुत अदभुत लोग हुए।
तो ह्यूमन कांशसनेस में कभी लहरें आती हैं। हमको ऐसा लगता न ऊपर से देखने में कि मैं अलग, आप अलग, हम अलग, मगर हमारी कांशसनेस इतनी इकट्ठी है कि जब लहर आती है--मुझमें जब लहर आएगी, तो मेरे साथ बहुत से लोगों को छू लेगी, जिनका हमें पता भी नहीं चलेगा।
प्रश्न:
भगवान, ऐसा होता है कि पूर्णता पाने से लोग तुमको--जैसा आपने बताया कि मक्खली गोशाल ने कुछ नहीं बताया। वैसा कोई ने बताया भी न हो, ऐसा भी होता है, उसका बताने का मन भी नहीं होता?
अनेक लोग। अनेक लोग। अनेक लोग। असल में बताना एक बात है और जानना बिलकुल दूसरी बात है।
बुद्ध से किसी ने पूछा, बुद्ध के साथ दस हजार भिक्षु चलते थे। किसी ने बुद्ध से पूछा कि आप इतने दिन से सिखा रहे हैं तीस वर्षों से, ये दस हजार भिक्षु सुनते हैं, इनमें से कुछ आप जैसे हुए कि नहीं?
बुद्ध ने कहा: बहुत।
तो उसने कहा: लेकिन उनका कोई पता नहीं चलता।
तो बुद्ध ने कहा: वे चुप हैं, मैं बोलता हूं।
और यही फर्क जैनों में--तीर्थंकर और केवली का फर्क है। तीर्थंकर भी केवली है, लेकिन तीर्थंकर टीचर भी है साथ में। और केवली सिर्फ केवली है, वह कुछ बोलता नहीं है, वह टीचर नहीं है। बस इतना ही फर्क है। महावीर जैसे बहुत लोग हुए हैं, लेकिन महावीर तीर्थंकर हैं।
प्रश्न:
अभी भी भारत में ऐसे लोग बहुत होंगे?
हमेशा हैं। लेकिन होता क्या है न, कि अब जैसे कि एक अगर मीरा जैसी किसी मैया को ज्ञान मिल जाए, तो वह गाएगी, नाचेगी और प्रकट करेगी, क्योंकि वह जो ट्रैनिंग है उसके माइंड की वह नाचने-गाने की है, वह ज्ञान उसका नाच-गाने से ही निकलेगा पीछे।
अगर कोई आदमी टीचर है, और माइंड उसका टीचर का है, और अगर वह ज्ञान को उपलब्ध हो जाए, तो वह ज्ञान टीचिंग्स से बहेगा। लेकिन एक आदमी टीचर नहीं है, एक आदमी नाचने वाला नहीं है, एक आदमी कवि नहीं है और वह ज्ञान को उपलब्ध हो जाए, तो उसका ज्ञान रुका रह जाए, उसके बहने का कोई निकास नहीं है। तो अनेक लोग चुप रह जाते हैं।
प्रश्न:
व्यक्त करने का मन नहीं है उनका?
नहीं-नहीं, मन का सवाल नहीं है, व्यक्त करने का माध्यम नहीं होता। शक्ति आ जाएगी, वह सब उसका मानसिक बल है, अपना है।
प्रश्न:
शक्ति आ जाती है इसका माने यह है कि कल्पना के भगवान हुए?
भगवान का कुछ लेना-देना नहीं है उसका। वह तुममें पैदा हो जाएगी, बिलकुल पैदा हो जाएगी। और उसी से ऐसा लगने लगेगा कि भगवान से शक्ति मिल रही है हमको। वह तुम्हारी अपनी शक्ति है, तुम्हारा अपना विल फोर्स है।
प्रश्न:
अच्छा, यह चारित्र्य के बारे में इतना कुछ कहा जाता है, उसके बारे में आपकी डेफिनिशन क्या है? कैरेक्टर स्टीक। संयम करना--उसका नाम चारित्र्य है? किसी औरत के सामने नहीं देखना--उसका नाम चारित्र्य है? अलग-अलग लोग अलग-अलग बात करते हैं चारित्र्य के बारे में। उसके बारे में आपका क्या कहना है?
मेरी बात समझ लीजिए।
संयम करने को मैं चारित्र्य नहीं कहता हूं। और जो स्त्री के सामने देखने से डरता है वह चरित्रहीन है।
प्रश्न:
रामकृष्ण जी स्त्री को देखने में ही न करते हैं।
चरित्रहीनता है। चरित्रहीनता है। इतना भय किससे? इतना भय किस बात से?
प्रश्न:
क्योंकि आजकल अभी ऐसा ही किया जाता है न, क्योंकि ये लड़के-लड़कियां साथ में घूमते हैं, तो बोले कि भई... आपने कल उसकी बात बोली कि हमारे लोग नीचे चला जा रहा है। अपन ऊपर नहीं हैं, तो नीचे जाने की बात नहीं है न! आपने कल बोला न वह तो।
कोई नीचे नहीं जा रहा है।
(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं है।)
साइकोलॉजी है। साइकोलॉजी है। जागरूक आदमी जिस तरह से जीता है, वह चरित्र है; और सोया हुआ आदमी जिस तरह से जीता है, वह चरित्रहीनता है। जागरूक आदमी जो भी करेगा, वह चरित्र है।
इसलिए असली सवाल भीतर जागे हुए होने का है।
तो जागा हुआ आदमी न स्त्री से डरता है, न भागता है, न स्त्री का पीछा करता है। वह सोए हुए आदमी के दोनों लक्षण हैं--सोया हुआ आदमी या तो स्त्री का पीछा करेगा, और या स्त्री से भागेगा। वह दोनों हालत में स्त्री को मानता है।
प्रश्न:
अगर यहां हम ध्यान करते हैं, तो कभी-कभी प्रकाश के बिंदु ऐसे यूं चले आते दिखते हैं।
हां, बिलकुल आते हुए मालूम पड़ेंगे।
प्रश्न:
वह कल्पना है कि--वह क्या है प्रकाश के बिंदु?
नहीं, वह कल्पना भी नहीं है। वह कल्पना भी नहीं है। वह असल में, हमारी जो इंद्रियां हैं, उनके बहुत सूक्ष्म अनुभव संगृहीत होते हैं। जैसे, आंख के स्नायुओं में प्रकाश के सूक्ष्म अनुभव संगृहीत हो जाते हैं। तो जैसे पीछे के स्नायु रिलैक्स होंगे, वे सूक्ष्म बिंदु प्रकाश के वहां से रिलीज होंगे। कान के अनुभव, कान के, अब उसमें, एक तो कान यहां ऊपर दिखाई पड़ रहा है, यह असली कान नहीं है। असली कान तो भीतर का यंत्र है जो सूक्ष्म इंद्रिय है। उसमें ध्वनि के बहुत से अनुभव संगृहीत हैं। सूक्ष्मतम तरंगें संगृहीत हो गई हैं। तो जब वे रिलैक्स होंगी, तो बहुत ध्वनियां बजेंगी भीतर। जिसको कि साधु-संन्यासी समझते हैं कि अनहद नाद हो रहा है। कुछ नहीं हो रहा है। वे जो कान के सूक्ष्मतम संगृहीत अनुभव हैं, वे संगृहीत अनुभव रिलीज हो रहे हैं।
प्रश्न:
मैं आपसे यही बात करता हूं, मैं जब ध्यान करता हूं तो पीछे एक, जैसे कि एक कोई मशीन चल रही है, सीऽऽऽ वैसी एक आवाज चलती रहती है। कभी-कभी डिस्टर्बिंग होती है।
हूं-हूं, बस उसको सबको देखना है। प्रकाश के बिंदु हों, ध्वनियां हों, सुगंध आ सकती है।
प्रश्न:
सुगंध आ सकती है?
हां, वह तो नाक के अनुभव हैं सूक्ष्म। बहुत अदभुत सुगंधें आ सकती हैं।
प्रश्न:
कभी यूं बैठे हैं न, तो टेस्ट आ जाता है।
हां, वे तो जब जैसे इंद्रियां भीतर से रिलैक्स होना शुरू होती हैं, तो कई अनुभव रिलीज होते हैं। जिनका आपको पता भी नहीं कि ये अनुभव भी हमारे पास हैं। तो उन सबको देखना है। उसमें कुछ मूल्यवान नहीं है मामला। वह कुछ ऐसा नहीं है कि कोई बहुत ऊंचा। लेकिन एक बात तय है कि वह ध्यान गहरा जाता है तभी यह सब होना शुरू होता है।
प्रश्न:
बिंदु मैं देखता हूं और यह सोचता हूं तो वे काफी होते हैं।
हां, उनको बढ़ा कर देखें, शांति से देखते रहें। वे धीरे-धीरे, धीरे-धीरे विलीन हो जाएंगे।
प्रश्न:
मैं यह ध्वनि से तो इतना घबड़ा गया हूं कि वह आती रहती है।
जब वह आए, तो उसके प्रति जागरूक हों। उससे बहुत फायदा होगा। उससे बहुत फायदा होगा!
प्रश्न:
जैसे हम कुकर रखते हैं उसके ऊपर से सीऽऽऽ...
मैं समझ गया। सन्नाटे की आवाज आ रही है।
प्रश्न:
सिद्धियां होती हैं?
सब हो सकते हैं। सब मानसिकता है।
प्रश्न:
वह तो यह अंदर की...
बहुत अंदर की बातें नहीं हैं। बहुत अंदर की बातें तो नहीं हैं, लेकिन ऊपर की बातें भी नहीं हैं; बीच की बातें हैं। शरीर से आत्मा तक जाने का जो मार्ग है, वहां बीच में मन की बड़ी सूक्ष्म शक्तियां हैं, जिनका हमें पता नहीं है। जैसे ही मन शांत होता है, वे शक्तियां जगती हैं। अपने आप भी जग सकती हैं कभी। साधारणतः अपने आप नहीं जगती हैं। फ्रैंकली चेष्टा करें, तो जग सकती हैं।
जैसे कि शरीर है हमारा, हमें अंदाज नहीं है। राममूर्ति है, उसने शरीर की कुछ शक्तियां जगा ली हैं, जो हमारे शरीर में भी हैं। राममूर्ति के पास कोई विशेष शरीर नहीं है, शरीर तो यही है, स्ट्रक्चर यही है, सब मामला यही है। ये ही फेफड़े हैं, यही हार्ट है, ये ही हाथ हैं, ये ही पैर हैं। लेकिन निरंतर चेष्टा करके इन सबकी शक्तियां सूक्ष्मतम बढ़ा ली हैं। तो वह कार के नीचे लेट जाता है, छाती पर से कार निकल जाती है। और वह हाथी को छाती पर खड़ा कर सकता है। और वह ट्रेन के इंजन को भी पीछे पकड़ ले, तो आगे बढ़ना मुश्किल है। यह शरीर की सूक्ष्मतम शक्तियों का विकास है।
प्रश्न:
तो वह तो कसरत से किया होगा।
हां। तो इसी तरह माइंड की सूक्ष्म शक्तियों की कसरतें हैं, और उनसे सिद्धियां हो जाती हैं। माइंड की सूक्ष्म शक्तियों की कसरतें हैं।
प्रश्न:
यहां तक कि वह शरीर से बाहर निकल कर दूसरे शरीर में जाता है, ये सब बातें।
हां-हां, यह बिलकुल, इसमें जरा भी कठिनाई नहीं है। जरा भी कठिनाई नहीं है। बल्कि शरीर को राममूर्ति जैसा बनाना थोड़ा कठिन मामला है। क्योंकि शरीर बहुत स्थूल माध्यम है। उसके साथ ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। माइंड बहुत सूक्ष्म माध्यम है। उसके साथ कम मेहनत करनी पड़ती है।
प्रश्न:
पर यह चंचल भी इतना है न माइंड। मेहनत कम करनी पड़ती है, मगर माइंड चंचल बहुत है।
चंचल उसकी शक्ति है। चंचल होना उसकी शक्ति है। चंचल न हो, तो तुम बुद्धू हो गए।
प्रश्न:
मैं तो मानता हूं कि मन आरक्षण छोड़ता है, मन का तो यह शांत होना स्वभाव है शायद, ऐसा लगता है।
बिलकुल स्वभाव है।
प्रश्न:
क्योंकि आरक्षण छोड़ देता है।
और चंचलता उसकी शक्ति है। अगर वह चंचल न रहे, तो तुम डेड हो गए। ईडियट का चंचल नहीं रहता, पता है? जितना बुद्धिमान आदमी, उतना चंचल मन होता है। वह चंचलता तो उसकी गति है, डाइनामिज्म है उसके भीतर।
प्रश्न:
तो ये शक्तियां, जब चंचलता रुकती है, तब आ जाती होगी?
हां। चंचलता को रोक कर या चंचलता को एक ही बिंदु पर लगा कर केंद्रित करते हैं--वह चंचलता ही है--वह उसमें चंचलता में फर्क नहीं पड़ता।
प्रश्न:
अच्छा।
हां। फर्क इतना ही पड़ता है, जैसे कि एक आदमी इधर से कूद कर उधर गया, उधर से कूद कर उधर गया, एक आदमी कूदता फिर रहा है एक स्थान से दूसरे स्थान पर, और एक आदमी एक ही स्थान पर कूद रहा है। कूदना दोनों का जारी है। लेकिन एक आदमी एक ही स्थान पर कूद रहा है, कूदना जारी है, स्थान नहीं बदल रहा है, कूद रहा है, एक ही जगह खड़े होकर कूद रहा है। जिसको तुम एकाग्रता कहते हो, वह एकाग्रता नहीं है, वह चंचलता एक ही बिंदु पर है, माइंड एक ही जगह कूद रहा है।
जैसे कह रहा: राम, राम, राम, राम--माइंड का कूदना जारी है। अगर राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर ऐसा कहे, तो हमको लगेगा कि बदल रहा है। वह कहता, राम, राम, राम, तो हमको लग रहा बदल नहीं रहा। लेकिन बदल रहा है पूरे वक्त। एक राम से दूसरे राम पर जाने में उतनी ही छलांग है जितनी राम से बुद्ध पर जाने में, जंप है वह उतना ही है, गैप जो है वह उतना ही है। लेकिन वह एक ही शब्द की वजह से एक ही जगह कूद रहा है, जगह नहीं बदल रहा है, कुलान जारी है।
तो माइंड तो पूरे वक्त ही कूदता है। जब तक है, तब तक कूदता ही है। तो अगर उसको एक जगह कुदाया जाए, तो उस जगह की शक्तियां जगनी शुरू हो जाती हैं जिस जगह कूदा है। उसके सेंटर्स हैं सब, सारी शक्तियों के।...