Vigyan Dharm Aur Kala

440.00

विज्ञान, धर्म और कला के अंतर-संबंध को समझाते हुए ओशो कहते है—”ये तीन बातें मैंने कही। विज्ञान प्रथम चरण है। वह तर्क का पहला कदम है। तर्क जब हार जाता है तो धर्म दूसरा चरण है, वह अनुभूति है। और जब अनुभूति सघन हो जाती है तो वर्षा शुरू हो जाती है, वह कला है। और इस कला की उपलब्धि सिर्फ उन्हें ही होती है जो ध्यान को उपलब्ध होते हैं। ध्यान की बाई-प्रॉडक्ट है। जो ध्यान के पहले कलाकार है, वह किसी न किसी अर्थों में वासना केंद्रित होता है। जो ध्यान के बाद कलाकार है, उसका जीवन, उसका कृत्य, उसका सृजन, सभी परमात्मा को समर्पित और परमात्मामय हो जाता है।”
इस पुस्तक के कुछ विषय बिंदु:
सत्य की खोज
सत्य का अनुभव
सत्य की अभिव्यक्ति
सर्विस अबॅव सेल्फ, सेवा स्वार्थ के ऊपर
क्या हम ऐसा मनुष्य पैदा कर सकेंगे जो समृद्ध भी हो और शांत भी?
जिसके पास शरीर के सुख भी हों और आत्मा के आनंद भी?
जीवन क्रांति के तीन सूत्र
धर्म का विधायक विज्ञान

SKU: B5000064 Category: Product ID: 23944
Spread the love

Description

अनुक्रम
#1: विज्ञान, धर्म और कला
#2: धर्म है बिलकुल वैयक्तिक
#3: सेवा स्वार्थ के ऊपर
#4: निर्विचार होने की कला
#5: प्रेम और अपरिग्रह
#6: मृत्यु का बोध
#7: धर्म और विज्ञान का समन्वय
#8: विधायक विज्ञान
#9: विज्ञान स्मृति है और धर्म ज्ञान
#10: धर्म को वैज्ञानिकता देनी जरूरी है
#11: नया मनुष्य

उद्धरण : विज्ञान, धर्म और कला – सातवां प्रवचन – धर्म और विज्ञान का समन्वय

“मनुष्य के जीवन की सारी यात्रा, जो अज्ञात है उसे जान लेने की यात्रा है। जो नहीं ज्ञात है उसे खोज लेने की यात्रा है। जो नहीं पाया गया है उसे पा लेने की यात्रा है। जो दूर है उसे निकट बना लेने की। जो कठिन है उसे सरल कर लेने की। जो अनुपलब्ध है उसे उपलब्ध कर लेने की।

मनुष्य की इस यात्रा ने स्वभावतः दो दिशाएं ले ली हैं। एक दिशा मनुष्य के बाहर की ओर जाती है, दूसरी मनुष्य के भीतर की ओर।… जो जगत बाहर है, उसकी खोज; जो अज्ञात, जो अननोन बाहर है, उसे जान लेने की यात्रा विज्ञान बन गई है। और जो जगत भीतर है, वह जो अज्ञात भीतर है, उससे परिचित हो जाने की, उसे जी लेने की और जान लेने की यात्रा धर्म बन गई। और मनुष्य की समृद्धि और शांति इसमें ही निर्भर है कि ये दोनों यात्राएं विरोधी न हों–सहयोगी हों, साथी हों, समन्वित हों। लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका।

अब तक जिन लोगों ने पदार्थ के जगत में खोज की है, वे लोग परमात्मा के विरोधी रहे हैं। और जिन लोगों ने परमात्मा की खोज की है, वे पदार्थ के निंदक रहे हैं। इन दोनों तरह के लोगों ने मनुष्य की संस्कृति को परिपूर्ण होने से रोका है। इन दोनों ने ही उसे परिपूर्ण होने से रोका है। क्योंकि मनुष्य न केवल शरीर है; न केवल आत्मा है,मनुष्य न केवल पदार्थ है; न केवल परमात्मा है, मनुष्य तो दोनों का अद्भुत मिलन और संगीत है |…

विज्ञान और धर्म दो शत्रुओं की भांति खड़े हो गए हैं। उनकी शत्रुता मनुष्य के लिए बहुत महंगी पड़ रही है।

पश्चिम विज्ञान का प्रतीक बन गया है। पूरब धर्म का प्रतीक बन गया है। विज्ञान नास्तिकता का प्रतीक बन गया है, धर्म अलौकिकता का। ये दोनों ही बातें भ्रांत हैं और गलत हैं। ये दोनों ही बातें अधूरी और एकांगी हैं।”—ओशो

Spread the love

Additional information

Weight 1 kg