Udio Pankh Pasar

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श्रद्धा के पंख

पृथ्वी को हमने नरक ही तो बना लिया है, नरक से बदतर बना लिया है। और सब इस पूरी विकृति का कारण–सुबह हो गई और हम जागते नहीं।

‘भोर भये परभात, अबहिं तुम करो पयानी।’

अब वक्त आ गया कि तुम चल पड़ो। उठो, यात्रा करो! कौन सी यात्रा? अंतर्यात्रा! मनुष्य होने की यात्रा।

अभी तुम मनुष्य केवल नाममात्र को हो। बीज-मात्र हो मनुष्य के। इसे वृक्ष बनाना है। वसंत आ गया और तुम बीज की तरह ही पड़े रहोगे? फूटोगे नहीं? अंकुरित नहीं होओगे? पल्लवित नहीं होओगे? फिर फूल कैसे लगेंगे? फिर गंध कैसे आकाश में उड़ेगी?

ओशो

SKU: B5000036 Category: Product ID: 23512
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Description

  #1: श्रद्धा के पंख
  #2: क्रांति का आह्वान
  #3: संन्यास : जीवन का महारास
  #4: तुम बहते जाना भाई
  #5: सत्य की अग्नि-परिक्षा
  #6: श्रद्धा यानी अंतर्यात्रा
  #7: व्यक्ति होना धर्म है
  #8: विद्रोह और ध्यान
  #9: सत्य का नियंत्रण
  #10: कोई ताजा हवा चली है अभी
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