Description
लाओत्से ने चुंगी की कीमत चुकाने के लिए अपने देश को जो खज़ाना दिया उसका नाम है ‘ताओ तेह किंग’, जिसका प्रारंभ कुछ ऐसे होता है : ‘सत्य कहा नहीं जा सकता और जो कहा जा सकता है वह सत्य नहीं है।’ उसी सत्य को ‘जनाने’ का प्रयास है ताओ उपनिषद। इस उपनिषद पर ओशो के 127 प्रवचन हैं। प्रारंभ में ओशो कहते हैं : ‘जो भी सत्य को कहने चलेगा, उसे पहले ही कदम पर जो बड़ी से बड़ी कठिनाई खड़ी हो जाती है वह यह कि शब्द में डालते ही सत्य असत्य हो जाता है।’ ताओ का अर्थ है—पथ, मार्ग। और लाओत्सु कहते हैं कि ‘जिस पथ पर विचरण किया जा सके वह सनातन और अविकारी पथ नहीं है।’ इस पथ पर जलवत होना, स्त्रैण-चित्त होना, घाटी-सदृश होना—127 प्रवचनों की यह प्रवचन शृंखला एक ही बात की ओर इंगित करती है कि अस्तित्व के साथ लड़ने में नहीं, उसके साथ बहने में ही हमारा कल्याण है। अत: जलालुद्दीन रूमी के हमसफर हंसों की भांति ओशो हमें नि:शब्द शब्दों के जरिए आकाश के राजमार्ग की उड़ान दे देते हैं जहां पीछे कोई पगचिन्ह नहीं, बस वही अंतहीन पथ है, वही गंतव्य है