Sakshi Ki Sadhana

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“अंधेरा हटाना हो, तो प्रकाश लाना होता है। और मन को हटाना हो, तो ध्यान लाना होता है। मन को नियंत्रित नहीं करना है, वरन जानना है कि वह है ही नहीं। यह जानते ही उससे मुक्ति हो जाती है।
यह जानना साक्षी चैतन्य से होता है। मन के साक्षी बनें। जो है, उसके साक्षी बनें। कैसे होना चाहिए, इसकी चिंता छोड़ दें। जो है, जैसा है, उसके प्रति जागें, जागरूक हों। कोई निर्णय न लें, कोई नियंत्रण न करें, किसी संघर्ष में न पड़ें। बस, मौन होकर देखें। देखना ही, यह साक्षी होना ही मुक्ति बन जाता है।
साक्षी बनते ही चेतना दृश्य को छोड़ द्रष्टा पर स्थिर हो जाती है। इस स्थिति में अकंप प्रज्ञा की ज्योति उपलब्ध होती है। और यही ज्योति मुक्ति है।”—ओशो

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Description

अनुक्रम
साक्षी की साधना
प्रवचन 1 : अनंत धैर्य और प्रतीक्षा
प्रवचन 2 : श्रद्धा-अश्रद्धा से मुक्‍ति
प्रवचन 3 : सहज जीवन परिवर्तन
प्रवचन 4 : विवेक का जागरण
प्रवचन 5 : प्रेम है परम सौंदर्य
प्रवचन 6 : समाधि का आगमन
प्रवचन 7 : ध्‍यान अक्रिया है
प्रवचन 8 : अहंकार का विसर्जन

उद्धरण: साक्षी की साधना, पहला प्रवचन
“साधारणतः जो लोग भी धर्म और साधना में उत्सुक होते हैं, वे सोचते हैं कि बहुत बड़ी-बड़ी बातें महत्वपूर्ण हैं। मेरी दृष्टि भिन्न है। जीवन बहुत छोटी-छोटी बातों से बनता है, बड़ी बातों से नहीं। और जो व्यक्ति भी बहुत बड़ी-बड़ी बातों की महत्ता के संबंध में गंभीर हो उठता है, वह इस तथ्य को देखने से वंचित रह जाता है, अक्सर वंचित रह जाता है। उसे यह बात नहीं दिखाई पड़ पाती है कि बहुत छोटी-छोटी चीजों से मिल कर जीवन बनता है।

परमात्मा और आत्मा और पुनर्जन्म और इस तरह की सारी बातें धार्मिक लोग विचार करते हैं। इसमें बहुत छोटे-छोटे जीवन के तथ्य, दृष्टियां और हमारे सोचने और जीने के ढंग उनके खयाल में नहीं होते। और तब बड़ी बातें हवा में अटकी रह जाती हैं; और जीवन के पैर जिस भूमि पर खड़े हैं, उस भूमि में कोई परिवर्तन नहीं हो पाता।….

एक बार यह खयाल में आ जाए कि जीवन पर जो भार है, जो टेंशन है, जो तनाव है, वह अतीत और भविष्य का है, तो मनुष्य को एक बिलकुल नया द्वार मिल जाता है खटखटाने का। और तब फिर वह रोज घड़ी दो घड़ी को सारे अतीत और सारे भविष्य से मुक्त हो सकता है। और खयाल रखिए, न तो अतीत की कोई सत्ता है सिवाय स्मृति के और न भविष्य की कोई सत्ता है सिवाय कल्पना के, जो है वह वर्तमान है। इसलिए यदि किसी भी दिन परमात्मा को या सत्य को जानना हो, तो वर्तमान के सिवाय और कोई द्वार नहीं है। अतीत है नहीं, जा चुका; भविष्य है नहीं, अभी आया नहीं है; जो है; एग्झिस्टेंशियल, जिसकी सत्ता है; वह है वर्तमान। इसी क्षण, जो सामने मौजूद क्षण है, वही। इस मौजूद क्षण में अगर मैं पूरी तरह मौजूद हो सकूं, तो शायद सत्ता में मेरा प्रवेश हो जाए। तो शायद जो सामने दरख्त खड़ा है, ऊपर तारे हैं, आकाश है, चारों तरफ लोग हैं, इन सबके प्राणों से मेरा संबंध हो जाए। उसी संबंध में मैं जानूंगा उसको भी जो मेरे भीतर है और उसको भी जो मेरे बाहर है।”—ओशो

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