Description
पहला प्रवचन
पहले अपना प्याला खाली करो
कथा:
जपानी सिगुरु ‘नानहन ने श्रौताओ से िशगन शस्त्र के एक प्रोफे सर का पररचय कराया और तब अहतहथ
गृह के प्याले में वह उनके हलए चाय उड़ेलते ही गए।
भरे प्याले में छलकती चाय को िेख कर प्रोफे सर अहधक िेर अपने करे रोक न सके । उन्होंने कहा- ” कृ पया
रुदकए प्याला पूरा भर चुका है। उसमें अब और चाय नहीं आ सकती।”
नानइन ने कहा- ”इस प्याले की तरह आप भी अपने अनुमानों और हनणगयों से भरे हुए हैं जब तक पहले
आप अपने प्याले को खाली न कर लें, मैं झेन की ओर संके त कै से कर सकता हं?”
तुम नानइन से भी अहधक खतरनाक व्यहि के पास आ गए हो, क्योंदक प्याले को खाली करने से ही काम
चलने वाला नहीं, प्याले को पूरी तरह तोड़ ही िेना होगा। खाली होकर भी, यदि तुम उपहस्थत हो, तब भी भरे
हुए ही हो। यहां तक दक खाली पन भी तुम्हें भर िेता है। यदि तुम अनुभव करते हो दक तुम खाली हो तो भी
तुम पूरी तरह खाली हो कहां? तुम तो वहां हो ही। हसफग तुम्हारा नाम बिल गया है, अब तुम अपने को ‘
खालीपन ‘ पुकारते हो। प्याले को खाली करने से कु छ नहीं होने वाला, इसे तो पूरी तरह तोड़ ही िेना है। जब
तुम हो ही नहीं, क्या तब भी चाय तुममें उडेली जा सकती है? और जब तुम यहां हो ही नहीं तो वास्तव में
तुममें चाय उड़ेलने की जरूरत ही क्या?
जब तुम खाली होते हो, तो तुममें पूरा अहस्तत्व उड़ेलना शुरू कर िेता है, पूरा अहस्तत्व प्रत्येक दिशा और
आयाम से ऊजाग की फु हार की तरह बरस उठता है। जब ‘ तुम ‘ नहीं होते तब परमात्मा ही होता है।
यह छोटी-सी कहानी बहुत सुन्िर है। िशगनशास्त्र केप्रोफे सर के साथ ऐसी घटना घटी ही थी। कहानी
कहती है-दक एक िशगनशास्त्र का प्रोफे सर नानइन के पास आया। वह अवश्य ही दकसी गलत कारण से ही आया
होगा, क्योंदक िशगन शास्त्र का प्रोफे सर, जैसा दक वह होता है, हमेशा गलत ही होता है।
िशगनशास्त्र का अथग है, बुहि, तकग, हवचार और वाि-हववाि। यह गलत होने का मागग ही है, क्योंदक यदि
तुम तकग-हवतकग करते हो तो अहस्तत्व के साथ प्रेमपूणग हो ही नहीं सकते। तकग ही बाधा है। यदि तुम तकग करते
हो, तो तुम बंि हो जाते हो। तुम्हारा पूरा अहस्तत्व ही अपने में तुम्हें कै ि कर िेता है। तब तुम्हारे िरवाजे खुले
नहीं होते और न अहस्तत्व ही तुम्हारे हलए खुला होता है।
पहले अपना प्याला खाली करो
कथा:
जपानी सिगुरु ‘नानहन ने श्रौताओ से िशगन शस्त्र के एक प्रोफे सर का पररचय कराया और तब अहतहथ
गृह के प्याले में वह उनके हलए चाय उड़ेलते ही गए।
भरे प्याले में छलकती चाय को िेख कर प्रोफे सर अहधक िेर अपने करे रोक न सके । उन्होंने कहा- ” कृ पया
रुदकए प्याला पूरा भर चुका है। उसमें अब और चाय नहीं आ सकती।”
नानइन ने कहा- ”इस प्याले की तरह आप भी अपने अनुमानों और हनणगयों से भरे हुए हैं जब तक पहले
आप अपने प्याले को खाली न कर लें, मैं झेन की ओर संके त कै से कर सकता हं?”
तुम नानइन से भी अहधक खतरनाक व्यहि के पास आ गए हो, क्योंदक प्याले को खाली करने से ही काम
चलने वाला नहीं, प्याले को पूरी तरह तोड़ ही िेना होगा। खाली होकर भी, यदि तुम उपहस्थत हो, तब भी भरे
हुए ही हो। यहां तक दक खाली पन भी तुम्हें भर िेता है। यदि तुम अनुभव करते हो दक तुम खाली हो तो भी
तुम पूरी तरह खाली हो कहां? तुम तो वहां हो ही। हसफग तुम्हारा नाम बिल गया है, अब तुम अपने को ‘
खालीपन ‘ पुकारते हो। प्याले को खाली करने से कु छ नहीं होने वाला, इसे तो पूरी तरह तोड़ ही िेना है। जब
तुम हो ही नहीं, क्या तब भी चाय तुममें उडेली जा सकती है? और जब तुम यहां हो ही नहीं तो वास्तव में
तुममें चाय उड़ेलने की जरूरत ही क्या?
जब तुम खाली होते हो, तो तुममें पूरा अहस्तत्व उड़ेलना शुरू कर िेता है, पूरा अहस्तत्व प्रत्येक दिशा और
आयाम से ऊजाग की फु हार की तरह बरस उठता है। जब ‘ तुम ‘ नहीं होते तब परमात्मा ही होता है।
यह छोटी-सी कहानी बहुत सुन्िर है। िशगनशास्त्र केप्रोफे सर के साथ ऐसी घटना घटी ही थी। कहानी
कहती है-दक एक िशगनशास्त्र का प्रोफे सर नानइन के पास आया। वह अवश्य ही दकसी गलत कारण से ही आया
होगा, क्योंदक िशगन शास्त्र का प्रोफे सर, जैसा दक वह होता है, हमेशा गलत ही होता है।
िशगनशास्त्र का अथग है, बुहि, तकग, हवचार और वाि-हववाि। यह गलत होने का मागग ही है, क्योंदक यदि
तुम तकग-हवतकग करते हो तो अहस्तत्व के साथ प्रेमपूणग हो ही नहीं सकते। तकग ही बाधा है। यदि तुम तकग करते
हो, तो तुम बंि हो जाते हो। तुम्हारा पूरा अहस्तत्व ही अपने में तुम्हें कै ि कर िेता है। तब तुम्हारे िरवाजे खुले
नहीं होते और न अहस्तत्व ही तुम्हारे हलए खुला होता है।