Jin Khoja Tin Paiyan

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जिन खोजा तिन पाइयां ऊर्जा का विस्तार है जगत और ऊर्जा का सघन हो जाना ही जीवन है।

जो हमें पदार्थ की भांति दिखाई पड़ता है, जो पत्थर की भांति भी दिखाई पड़ता है, वह भी ऊर्जा, शक्ति है। जो हमें जीवन की भांति दिखाई पड़ता है, जो विचार की भांति अनुभव होता है, जो चेतना की भांति प्रतीत होता है, वह भी उसी ऊर्जा, उसी शक्ति का रूपांतरण है।

सारा जगत– चाहे सागर की लहरें, और चाहे सरू के वृक्ष, और चाहे रेत के कण, और चाहे आकाश के तारे, और चाहे हमारे भीतर जो है वह, वह सब एक ही शक्ति का अनंत-अनंत रूपों में प्रगटन है। ओशो

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Description

अनुक्रम
साधना शिविर
#1: उदघाटन प्रवचन … यात्रा कुंडलिनी की
#2: दूसरा प्रवचन व ध्यान प्रयोग … बुंद समानी समुंद में
#3: तीसरा प्रवचन व ध्यान प्रयोग … ध्यान है महामृत्यु
#4: चौथा प्रवचन … ध्यान पंथ ऐसो कठिन
#5: अंतिम ध्यान प्रयोग … कुंडलिनी, शक्तिपात व प्रभु प्रसाद
#6: समापन प्रवचन … गहरे पानी

प्रश्नोत्तर चर्चाएं
#7: पहली प्रश्नोत्तर चर्चा … कुंडलिनी जागरण व शक्तिपात
#8: दूसरी प्रश्नोत्तर चर्चा … यात्रा: दृश्य से अदृश्य की ओर
#9: तीसरी प्रश्नोत्तर चर्चा … श्वास की कीमिया
#10: चौथी प्रश्नोत्तर चर्चा … आंतरिक रूपांतरण के तथ्य
#11: पांचवीं प्रश्नोत्तर चर्चा … मुक्ति सोपान की सीढ़ियां
#12: छठवीं प्रश्नोत्तर चर्चा … सतत साधना: न कहीं रुकना, न कहीं बंधना
#13: सातवीं प्रश्नोत्तर चर्चा … सात शरीरों से गुजरती कुंडलिनी
#14: आठवीं प्रश्नोत्तर चर्चा … सात शरीर और सात चक्र
#15: नौवीं प्रश्नोत्तर चर्चा … धर्म के असीम रहस्य सागर में
#16: दसवीं प्रश्नोत्तर चर्चा … ओम्‌ साध्य है, साधन नहीं
#17: ग्यारहवीं प्रश्नोत्तर चर्चा … मनस से महाशून्य तक
#18: बारहवीं प्रश्नोत्तर चर्चा … तंत्र के गुह्य आयामों में
#19: तेरहवीं प्रश्नोत्तर चर्चा … अज्ञात, अपरिचित गहराइयों में

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