Jeevan Hi Hai Prabhu

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“योग एक विज्ञान है, कोई शास्त्र नहीं है।
योग के अतिरिक्त जीवन के परम सत्य तक पहुंचने का कोई उपाय नहीं है।
योग जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है।
योग विज्ञान है, विश्वास नहीं।
योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है।
योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।
नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक।”—ओशो

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Description

अनुक्रम
#1: जगत—एक परिवार
#2: घर-मंदिर
#3: प्रेम का केंद्र
#4: परम जीवन का सूत्र
#5: सरल सत्य
#6: संन्यास की दिशा

उद्धरण: योग : नये आयाम, तीसरा प्रवचन
“एक सूत्र मैंने आपसे कहा: जीवन ऊर्जा है और ऊर्जा के दो आयाम हैं–अस्तित्व और अनस्तित्व। और फिर दूसरे सूत्र में कहा कि अस्तित्व के भी दो आयाम हैं–अचेतन और चेतन। सातवें सूत्र में चेतन के भी दो आयाम हैं–स्व चेतन, सेल्फ कांशस और स्व अचेतन, सेल्फ अनकांशस। ऐसी चेतना जिसे पता है अपने होने का और ऐसी चेतना जिसे पता नहीं है अपने होने का।

जीवन को यदि हम एक विराट वृक्ष की तरह समझें, तो जीवन-ऊर्जा एक है–वृक्ष की पींड़। फिर दो शाखाएं टूट जाती हैं–अस्तित्व और अनस्तित्व की, एक्झिस्टेंस और नॉन-एक्झिस्टेंस की। अनस्तित्व को हमने छोड़ दिया, उसकी बात नहीं की, क्योंकि उसका योग से कोई संबंध नहीं है। फिर अस्तित्व की शाखा भी दो हिस्सों में टूट जाती है–चेतन और अचेतन। अचेतन की शाखा को हमने अभी चर्चा के बाहर छोड़ दिया, उससे भी योग का कोई संबंध नहीं है। फिर चेतन की शाखा भी दो हिस्सों में टूट जाती है–स्व चेतन और स्व अचेतन। सातवें सूत्र में इस भेद को समझने की कोशिश सबसे ज्यादा उपयोगी है। अब तक जो मैंने कहा है, वह आज जो सातवां सूत्र आपसे कहूंगा, उसके समझने के लिए भूमिका थी। सातवें सूत्र से योग की साधना प्रक्रिया शुरू होती है। इसलिए इस सूत्र को ठीक से समझ लेना उपयोगी है।

पौधे हैं, पक्षी हैं, पशु हैं। वे सब चेतन हैं, लेकिन स्वयं की चेतना उन्हें नहीं है। चेतन हैं, फिर भी अचेतन हैं। हैं, जीवन है, चेतना है, लेकिन स्वयं के होने का बोध नहीं है। आदमी है, वह भी वैसे ही है, जैसे पशु हैं, पक्षी हैं, पौधे हैं, लेकिन उसे स्वयं के होने का बोध है। उसकी चेतना में एक नया आयाम और जुड़ जाता है–वह स्व चेतन भी है। उसे यह भी पता है कि मैं चेतन हूं। अकेला चेतन होना काफी नहीं है मनुष्य होने के लिए। मनुष्य होने की यह भी शर्त है कि मुझे यह भी पता है कि मैं चेतन हूं। इतना ही फर्क मनुष्य और पशु में है। पशु भी चेतन है, लेकिन स्वयं बोध नहीं उसे कि मैं चेतन हूं। मनुष्य को यह बोध है कि मैं स्वयं चेतन हूं।”—ओशो

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