Description
विकास दो प्रकार का है: सामूहिक विकास और वैयक्तिक सचेतन विकास। लेकिन ‘विकास’ को अचेतन सामूहिक प्रगति समझा जाता है, इसलिए यह बेहतर होगा कि हम मनुष्य के संदर्भ में ‘क्रांति’ शब्द का प्रयोग करें। मनुष्य के साथ क्रांति संभव हो जाती है। क्रांति का जिस अर्थ में मैं यहां प्रयोग कर रहा हूं, उसका अभिप्राय है, विकास की ओर किया गया निजी, सचेतन प्रयास। यह निजी उत्तरदायित्व को उसकी चरम सीमा पर लाना है। अपने विकास के लिए मात्र तुम ही उत्तरदायी हो।
अंतस-क्रांति चुनाव की संभावना के साथ चिंता एक छाया की तरह आती है। अब हर चीज को चुना जाना है। प्रत्येक कार्य सचेतन प्रयास होना है। तुम अकेले ही उत्तरदायी होते हो। अगर तुम असफल होते हो, तो तुम असफल होते हो। यह तुम्हारा उत्तरदायित्व है। अगर तुम सफल होते हो, तो तुम सफल होते हो। यह भी तुम्हारा उत्तरदायित्व है।
और एक अर्थ में प्रत्येक चुनाव परम होता है। तुम इसे अनकिया नहीं कर सकते, तुम इसे भूल नहीं सकते, तुम इससे पहले की स्थिति में फिर से वापस नहीं जा सकते। तुम्हारा चुनाव तुम्हारी नियति बन जाता है। यह तुम्हारे साथ रहेगा और यह तुम्हारा एक हिस्सा बन जाएगा। तुम इससे इनकार नहीं कर सकते। लेकिन तुम्हारा चुनाव सदा ही एक जुआ है। प्रत्येक चुनाव अनभिज्ञता में किया जाता है, क्योंकि कुछ भी निश्र्चित नहीं होता। यही कारण है कि मनुष्य चिंता से पीड़ित होता है। वह अपनी गहराइयों में चिंतित होता है। सबसे पहली बात जो उसे संताप ग्रस्त करती है, वह यह है कि होना है या नहीं होना है? करना है या नहीं करना है? यह करूं या वह करूं? चुनाव न करना संभव नहीं है। अगर तुम नहीं चुनते हो, तो तुम न चुनने को चुन रहे हो, यह भी एक चुनाव है। इसलिए तुम चुनने के लिए बाध्य हो। तुम ‘न चुनने’ के लिए स्वतंत्र नहीं हो। चुनाव न करने का वैसा ही परिणाम होगा जैसा कि चुुनाव करने का ।
यह सजगता ही मनुष्य की गरिमा, प्रतिष्ठा और सौंदर्य है। लेकिन यह एक बोझ भी है। जैसे ही तुम सजग होते हो वैसे ही तुम्हें एक गरिमा प्राप्त होती है और बोझ भी अनुभव होता है, दोनों एक साथ आते हैं। प्रत्येक कदम इन्हीं दो बिंदुओं के बीच की गति होती है।
मनुष्य के साथ दो बातें पैदा होती हैं: चुनाव करना और जागरूकता से अपनी निजता को विकसित करना। तुम विकसित हो सकते हो पर तुम्हारा विकास तुम्हारा निजी प्रयास होता है। तुम विकसित होकर बुद्ध हो सकते हो या नहीं भी हो सकते हो। चुनाव तुम्हारे हाथ में है। तो विकास दो प्रकार का है: सामूहिक विकास और वैयक्तिक सचेतन विकास। लेकिन ‘विकास’ को अचेतन सामूहिक प्रगति समझा जाता है, इसलिए यह बेहतर होगा कि हम मनुष्य के संदर्भ में ‘क्रांति’ शब्द का प्रयोग करें। मनुष्य के साथ क्रांति संभव हो जाती है। क्रांति का जिस अर्थ में मैं यहां प्रयोग कर रहा हूं, उसका अभिप्राय है, विकास की ओर किया गया निजी, सचेतन प्रयास। यह निजी उत्तरदायित्व को उसकी चरम सीमा पर लाना है। अपने विकास के लिए मात्र तुम ही उत्तरदायी हो।
– ओशो