Bhaj Govindam Discourse # 1 to 10 in Pen Drive

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Bhaj Govindam Discourse # 1 to 10 in Pen Drive
SKU: P6000014 Categories: , Product ID: 22063
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Description

इस मधुर गीत का पहला पद शंकर ने तब लिखा, जब वे एक गांव से गुजरते थे, और उन्होंने एक बूढ़े आदमी को व्याकरण के सूत्र रटते देखा। उन्हें बड़ी दया आई, मरते वक्त व्याकरण के सूत्र रट रहा है यह आदमी! पूरा जीवन भी गंवा दिया, अब आखिरी क्षण भी गंवा रहा है! पूरे जीवन तो परमात्मा को स्मरण नहीं किया, अब भी व्याकरण में उलझा है! व्याकरण के सूत्र रटने से क्या होगा?
शंकर की सारी वाणी में ‘भज गोविन्दम्’ से मूल्यवान कुछ भी नहीं है। क्योंकि शंकर मूलतः दार्शनिक हैं। उन्होंने जो लिखा है, वह बहुत जटिल है; वह शब्द, शास्त्र, तर्क, ऊहापोह, विचार है। लेकिन शंकर जानते हैं कि तर्क, ऊहापोह और विचार से परमात्मा पाया नहीं जा सकता; उसे पाने का ढंग तो नाचना है, गीत गाना है; उसे पाने का ढंग भाव है, विचार नहीं; उसे पाने का मार्ग हृदय से जाता है, मस्तिष्क से नहीं। इसलिए शंकर ने ब्रह्म-सूत्र के भाष्य लिखे, उपनिषदों पर भाष्य लिखे, गीता पर भाष्य लिखा, लेकिन शंकर का अंतरतम तुम इन छोटे-छोटे पदों में पाओगे। यहां उन्होंने अपने हृदय को खोल दिया है।
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Additional information

Weight 0.350 kg
Size

16 in x 20 in, 20 in x 30 in