YOG/DHYAN/SADHANA
Jo Ghar Bare Aapna 07
Seventh Discourse from the series of 8 discourses - Jo Ghar Bare Aapna by Osho.
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इसके पहले कि हम आज की आखिरी बैठक में प्रवेश करें, ध्यान के संबंध में दो-चार बातें पूछी गई हैं, वह समझ लेना उचित होगा।
एक मित्र ने पूछा है कि भगवान, घर जाकर हम कैसे इस विधि का उपयोग कर सकेंगे? पास-पड़ोस के लोगों को आवाज, चिल्लाना अजीब सा मालूम होगा। घर के लोगों को भी अजीब सा मालूम होगा।
होगा ही। लेकिन घर के लोगों से भी प्रार्थना कर लें, पास-पड़ोस के लोगों से भी प्रार्थना कर आएं कि एक घंटा मैं ऐसी विधि कर रहा हूं। इस विधि से चिल्लाना, रोना, हंसना, नाचना होगा। आपको तकलीफ हो तो माफ करेंगे। और घर के लोगों को भी निवेदन कर दें। तो ज्यादा अड़चन नहीं होगी।
और एक-दो दिन में लोग परिचित हो जाते हैं, फिर कठिनाई नहीं होती।
लोग नमाज पढ़ते हैं तो कठिनाई नहीं होती; लोग प्रार्थना करते हैं तो कठिनाई नहीं होती; लोग भजन गाते हैं तो कठिनाई नहीं होती; लोग रामधुन करते हैं तो कठिनाई नहीं होती। क्योंकि लोग परिचित हो गए हैं।
साल, दो साल की कठिनाई है। इस ध्यान से पूरे मुल्क में लाखों लोग प्रयोग करेंगे, तो फिर कठिनाई नहीं रह जाएगी। यह ज्ञात हो जाएगा कि यह प्रक्रिया भी ध्यान की प्रक्रिया है। और यह इतनी तीव्र प्रक्रिया है कि दो-चार-दस लोग नहीं, लाखों-करोड़ों लोग इसे कर सकेंगे।
तो जो प्राथमिक रूप से इस प्रयोग को कर रहे हैं, उन्हें थोड़ी अड़चन होगी। लोगों का हंसना भी झेलना पड़ेगा। वह स्वाभाविक है। उतना साहस जुटाना जरूरी है। और जो ध्यान में जाने की तैयारी रखते हैं, उनसे साहस की अपेक्षा की जा सकती है।
फिर यह कोई बहुत बड़ा साहस नहीं है।
दूसरे एक मित्र ने पूछा है कि भगवान, आप सामने नहीं होंगे तो सुझाव कैसे मिल सकेगा?
अगर आपको प्रक्रिया हो गई है, तो मेरे होने की कोई जरूरत नहीं है। आप खुद ही आत्म-सुझाव दे सकेंगे। और सच तो यह है कि अगर प्रक्रिया आपमें प्रवेश कर गई, तो सुझाव की भी जरूरत नहीं होगी, आप सीधे बिना सुझाव के चरण पूरा कर सकेंगे। दस मिनट तक श्वास का, दस मिनट तक नाचने-चिल्लाने का, दस मिनट तक ‘मैं कौन हूं?’ यह पूछने का। यह आप कर सकेंगे।
एक और मित्र ने पूछा है कि भगवान, दस-दस मिनट का कैसे खयाल रहेगा?
जरूरी नहीं है कि ठीक दस ही मिनट हो। बारह मिनट हो जाए तो हर्ज नहीं, पंद्रह मिनट हो जाए तो हर्ज नहीं। आप सिर्फ इतना ही अनुमान रखें कि दस मिनट से कम न हो। वह दो-चार दिन में आपको अनुमान हो जाएगा कि दस मिनट से कम न हो बस। ज्यादा कितना ही हो जाए, हर्ज नहीं है।
फिर तीन महीने तक ही चारों चरण पूरे करने पड़ेंगे। जैसे ही आपकी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी--किसी की तीन सप्ताह में भी हो सकती है, किसी की तीन दिन में भी हो सकती है, लेकिन आमतौर से तीन महीने लग जाएंगे प्रक्रिया के पूरे प्रवेश करने में--तो दूसरा और तीसरा चरण अपने आप गिर जाएंगे। आप मिनट, दो मिनट श्वास लेंगे कि सीधे चौथे चरण में प्रवेश हो जाएगा। वे जरूरी नहीं रह जाएंगे। इसलिए तीन महीने तक आपको जरूर श्रम लेना है। और अपनी तरफ से बंद नहीं करना है। जब कोई चरण अपने आप गिर जाए, तब बात अलग। आप अपनी तरफ से जारी रखें।
एक मित्र ने रात्रि के निरीक्षण के प्रयोग के, साक्षी के प्रयोग के संबंध में पूछा है कि भगवान, यहां हम आप पर साक्षी का प्रयोग करते हैं, घर क्या करेंगे?
सवाल साक्षी होने का है। यह साक्षी होना किसी भी चीज पर हो सकता है।
रात्रि का अपलक निरीक्षण का प्रयोग--एक मित्र ने पूछा है कि मेरे बिना वे कैसे करेंगे?
सवाल मेरा नहीं है। खुले आकाश की तरफ चालीस मिनट बिना आंख झपके देखते रहें। और बहुत अदभुत परिणाम होंगे। खुले आकाश की तरफ चालीस मिनट देखते-देखते आप अचानक पाएंगे कि आप आकाश का हिस्सा हो गए हैं, आकाश आपके भीतर प्रवेश कर गया। समुद्र के किनारे बैठ जाएं, चालीस मिनट तक अपलक समुद्र को देखते रहें और आप पाएंगे कि आप और लहरें एक हो गईं। वृक्षों को देखते रहें और यही हो जाएगा। कुछ भी उपयोग किया जा सकता है। और जिन्हें मेरी तरफ देखने से एक अंतर्संबंध निर्मित हुआ है--जैसा आज बहुत से मित्रों ने आकर मुझे खबर दी कि उन्हें बहुत कुछ प्रतीति हुई है--वे मेरा चित्र रखेंगे, तो भी मेरा काम पूरा हो जाएगा।
एक मित्र ने पूछा है कि भगवान, आपके साथ के बिना, पांचवें चरण में आपके माध्यम के बिना हमारा क्या होगा?
नहीं, मेरी कोई भी जरूरत नहीं है। तीसरे चरण के बाद आपकी भी जरूरत नहीं है। तीसरे चरण तक आपकी जरूरत है। तीसरे चरण के बाद आपकी भी जरूरत नहीं है। चौथा चरण घटित होगा। और चौथे चरण के बाद पांचवां चरण अपने से घटित होगा, उसकी आपको चिंता लेने की जरूरत नहीं है। किसी माध्यम की कोई जरूरत नहीं है। तीन चरण आप पूरे कर सकें पूरी शक्ति से, तो बाकी अपने आप पीछे से आ जाएगा छाया की भांति। फिर भी, अगर आप चौथे चरण तक पहुंच सकते हैं, तो कभी भी मेरी जरूरत मालूम पड़े तो मैं कहीं भी मौजूद हो सकता हूं। आपका स्मरण भर काफी होगा। चौथे चरण तक पहुंच सकते हैं तो! अगर चौथे चरण में आपका प्रवेश हो जाता है, तो मेरी मौजूदगी किसी भी क्षण पुकारी जा सकती है। उसमें बहुत कठिनाई नहीं है। वह बहुत सरल सी बात है।
असल में हम एक-दूसरे को शरीर से ही देखने के आदी हैं, इसलिए कठिनाई है। हमारे और जीवन-तल भी हैं, हमारी और यात्राएं भी हैं, हम और तरह से भी जुड़ते हैं जहां समय और काल और क्षेत्र, स्पेस और टाइम का कोई संबंध नहीं रह जाता है।
अगर चौथे चरण तक आप पहुंच जाते हैं, तो मुझसे कुछ सवाल भी पूछना हो तो आप पूछ सकते हैं सिर्फ अपने मन में, और उत्तर भी पा सकते हैं। वह बहुत कठिन नहीं है। लेकिन सवाल असल में चौथे चरण में प्रवेश का है।
तो तीन चरण आप पूरी ताकत से करें, चौथे चरण में भी प्रवेश हो जाएगा। और आज की तो यह अंतिम बैठक है इसलिए बहुत कुछ घटित होगा। करीब सत्तर प्रतिशत लोगों को बहुत कुछ अनुभव इन तीन दिनों में हुआ है। जिनको कुछ भी अनुभव हुआ है, आज उनके अनुभव की चरम स्थिति भी प्रकट होगी। तो आज तो बहुत गहराई से प्रयोग में जाना है। जिनको थोड़े ही अनुभव हुए हैं, वे भी आज गहरे अनुभव में उतर सकते हैं। जिनको कोई अनुभव नहीं हुआ है, वे भी आखिरी प्रयास करने की कोशिश करें। कई बार ऐसा होता है कि जमीन हम खोदते हैं और लंबा खोदते हैं और पानी नहीं निकलता, लेकिन कभी एक कुदाली और कि पानी निकल आता है। कई बार जरा सी मिट्टी की पर्त रह जाती है और हम लौट आते हैं।
तो जिनको नहीं कुछ हो सका है--बहुत थोड़ी संख्या, तीस प्रतिशत लोगों की है, जिनको नहीं कुछ हो सका है--वे आखिरी प्रयास और करें। और आज और भी अर्थों में बहुत कुछ हो सकेगा, क्योंकि तीन दिन के परिणाम ने इस जगह को एक विशेषता दे दी है। और आज तो पूरी शक्ति से पुकार उठेगी। तो जिनको नहीं हुआ है, उनको बाकी लोगों की मौजूदगी भी फायदा पहुंचाने का कारण बन सकती है। इसलिए आज अपनी पूरी शक्ति को पुकार कर, अपने पूरे संकल्प को भर कर और परमात्मा से पूरी प्रार्थना करके रात्रि का प्रयोग करना है।
आज के इस आखिरी प्रयोग में दो-तीन बातें समझ लेनी जरूरी हैं।
एक तो, जिन लोगों ने भी इन तीन दिन के प्रयोग में वस्त्र अलग किए हों, वे आज पहले से ही वस्त्र अलग कर देंगे तो उचित होगा, वह उनके लिए बाधा नहीं रह जाएगी। दूसरा, जो लोग भी खड़े होना चाहते हैं, वे दीवाल के किनारे तीनों तरफ खड़े हो जाएंगे ताकि बीच में बैठने वाले लोगों को मैं दिखाई पड़ना बंद न हो जाऊं। तीसरी बात, आज एक भी व्यक्ति दर्शक की हैसियत से भीतर नहीं रहेगा, अन्यथा उसे नुकसान भी हो सकता है। आज कोई भी व्यक्ति दर्शक की हैसियत से भीतर नहीं रहेगा। अगर किसी को दर्शक की हैसियत से होना है तो ऊपर गैलरी पर चला जाए, भीतर भूल कर न रहे। इससे दूसरों को ही नुकसान नहीं, उसको भी नुकसान हो सकता है।
जिन लोगों ने वस्त्र निकाले थे, वे आज पहले से ही अलग कर देंगे, ताकि उन्हें बीच में वस्त्र अलग करने का कष्ट न रह जाए--एक। जिन लोगों ने गहरा प्रयोग किया है और वस्त्र निकालने की मनःस्थिति आ गई थी--मुझे कई लोगों ने आकर कहा है कि वस्त्र निकालने की मनःस्थिति थी, लेकिन वे संकोच कर गए, रोक गए--वे भी आज आखिरी प्रयोग में अलग उनको फेंक देंगे तो उचित होगा। जिन लोगों को बहुत गहरा प्रयोग होने वाला है वे ऊपर आ जाएंगे। और ऊपर जो लोग बैठे हों वे नीचे सामने आ जाएंगे। और जिनको खड़े होना है वे दीवाल के किनारे चारों तरफ खड़े हो जाएं, कोई व्यक्ति बीच में नहीं घूमेगा। जिनको खड़ा होना है, जो बाद में खड़े हो जाते हैं, वे अभी से दीवाल के किनारे खड़े हो जाएं। बीच में सिर्फ बैठने वाले लोग रहेंगे, उनको फिर खड़े नहीं होना है। जिनको जरा भी खयाल हो कि बीच में मैं खड़ा हो सकता हूं, वे दीवाल के किनारे आ जाएं। ऊपर जो लोग बैठे हों और जिनको खयाल हो कि वे बहुत गति में नहीं आ सकेंगे, वे नीचे सामने आ जाएं। ऊपर तो सिर्फ जो तीव्र गति में आने वाले हैं वे ही लोग होंगे।
हां, दीवाल के किनारे खड़े हो जाएं खड़े होने वाले लोग, तीनों तरफ दीवाल के किनारे हो जाएं। दरवाजा बंद कर दें वहां और दीवाल के किनारे खड़े हो जाएं। और ध्यान रहे, अपनी जगह से नहीं हटना है आपको, अपनी जगह पर ही होना है। शीघ्र कर लें, फिर मैं दो-तीन बातें और कहने वाला हूं, वे समझ लें। दीवाल के किनारे चले जाएं। जिनको बैठे ही रहना है, वे ही लोग बीच में रहेंगे, बाकी लोग किनारे हट जाएं।
देखें, अपनी जगह से कोई इधर-उधर नहीं घूमेगा। किसी को बीच में नहीं घूमना है। अपनी ही जगह पर होना है। जो बैठा है, वह बैठा रहेगा; जो खड़े हैं, वे खड़े रहेंगे। अभी खड़े हो जाएं, जिनको जरा भी खयाल हो कि उनको खड़े होने में सुविधा होगी, वे किनारे पर खड़े हो जाएं। हां, किनारे पर हट जाइए, यहां बीच में नहीं खड़े होंगे।
दो-तीन बातें समझ लें। एक तो, तीन दिन हमने पूरी शक्ति लगाई, आज एक नया सूत्र उसमें जोड़ देना है। यह आखिरी विदा की बैठक है। आज जो भी आप करेंगे, पूरे आनंद-भाव से भी करना है, सिर्फ शक्ति का भाव ही नहीं। अगर आप हंस रहे हैं, तो सिर्फ शक्ति काफी नहीं है, उसमें आनंद के भाव से हंसें। अगर नाच रहे हैं, तो सिर्फ शक्ति ही काफी नहीं है, उसको आनंद का भाव भी दे दें, आनंद से नाचें। आपके चेहरे, आपके हाथ-पैर, आपकी आवाज, आपकी पुकार, उस सब में आपका आनंद भी प्रकट हो, आपकी शक्ति ही केवल प्रकट न हो। बहुत कुछ घटित होगा। जैसे ही हम चार्ज्ड हो जाएंगे, इस कमरे में आज बहुत कुछ होगा। इसलिए जो मैं कह रहा हूं उसे ठीक से समझ लें। कल मैंने पंद्रह मिनट में ही प्रयोग को पूरा किया, जो तीस मिनट करना चाहिए था। कुछ लोग बीच में खड़े हो गए, उनकी वजह से बाधा पड़ी, लोगों को मैं दिखाई पड़ना बंद हो गया। तो कोई बीच में खड़ा नहीं होगा।
ध्यान मेरे ऊपर रहेगा; आंखें झपकनी नहीं हैं, पूरे समय मुझे देखते रहना है; और फिर जो भी आपको हो उसे करना है। हो सकता है किसी को कुछ भी करते हुए मालूम न हो, तो उसके पड़ोस में जो हो रहा है उसकी धुन में उसे सम्मिलित हो जाना है, पड़ोसी को उसकी प्रतिध्वनि और उत्तर दे देना। लेकिन पूरे भवन में कोई भी आदमी खाली न रह जाए, सभी कुछ कर रहे हों। तीस मिनट ताकि उनके करने के हों, फिर पीछे हम दस मिनट विश्राम में चले जाएंगे। जो तीस मिनट विश्राम में बैठा रहेगा, वह पीछे के दस मिनट का राज और रहस्य नहीं पा सकेगा।
ध्यान रहे, शक्ति के साथ आनंद भी सम्मिलित हो जाए। कोई आनंद से नाचेगा, कोई आनंद से हंसेगा, कोई आनंद से रोएगा, कोई आनंद से चिल्लाएगा, कोई आनंद से गीत गाने लगेगा, पर वह सब आनंद के भाव शक्ति के साथ उसे जोड़ देना। यह विदा की बैठक है, वह आनंद के भाव से हम परमात्मा को धन्यवाद भी दे सकेंगे। और आज अपनी पूरी शक्ति लगा देनी है, कुछ भी बचाना नहीं है।
एक मित्र ने पूछा है कि भगवान, घर जाकर हम कैसे इस विधि का उपयोग कर सकेंगे? पास-पड़ोस के लोगों को आवाज, चिल्लाना अजीब सा मालूम होगा। घर के लोगों को भी अजीब सा मालूम होगा।
होगा ही। लेकिन घर के लोगों से भी प्रार्थना कर लें, पास-पड़ोस के लोगों से भी प्रार्थना कर आएं कि एक घंटा मैं ऐसी विधि कर रहा हूं। इस विधि से चिल्लाना, रोना, हंसना, नाचना होगा। आपको तकलीफ हो तो माफ करेंगे। और घर के लोगों को भी निवेदन कर दें। तो ज्यादा अड़चन नहीं होगी।
और एक-दो दिन में लोग परिचित हो जाते हैं, फिर कठिनाई नहीं होती।
लोग नमाज पढ़ते हैं तो कठिनाई नहीं होती; लोग प्रार्थना करते हैं तो कठिनाई नहीं होती; लोग भजन गाते हैं तो कठिनाई नहीं होती; लोग रामधुन करते हैं तो कठिनाई नहीं होती। क्योंकि लोग परिचित हो गए हैं।
साल, दो साल की कठिनाई है। इस ध्यान से पूरे मुल्क में लाखों लोग प्रयोग करेंगे, तो फिर कठिनाई नहीं रह जाएगी। यह ज्ञात हो जाएगा कि यह प्रक्रिया भी ध्यान की प्रक्रिया है। और यह इतनी तीव्र प्रक्रिया है कि दो-चार-दस लोग नहीं, लाखों-करोड़ों लोग इसे कर सकेंगे।
तो जो प्राथमिक रूप से इस प्रयोग को कर रहे हैं, उन्हें थोड़ी अड़चन होगी। लोगों का हंसना भी झेलना पड़ेगा। वह स्वाभाविक है। उतना साहस जुटाना जरूरी है। और जो ध्यान में जाने की तैयारी रखते हैं, उनसे साहस की अपेक्षा की जा सकती है।
फिर यह कोई बहुत बड़ा साहस नहीं है।
दूसरे एक मित्र ने पूछा है कि भगवान, आप सामने नहीं होंगे तो सुझाव कैसे मिल सकेगा?
अगर आपको प्रक्रिया हो गई है, तो मेरे होने की कोई जरूरत नहीं है। आप खुद ही आत्म-सुझाव दे सकेंगे। और सच तो यह है कि अगर प्रक्रिया आपमें प्रवेश कर गई, तो सुझाव की भी जरूरत नहीं होगी, आप सीधे बिना सुझाव के चरण पूरा कर सकेंगे। दस मिनट तक श्वास का, दस मिनट तक नाचने-चिल्लाने का, दस मिनट तक ‘मैं कौन हूं?’ यह पूछने का। यह आप कर सकेंगे।
एक और मित्र ने पूछा है कि भगवान, दस-दस मिनट का कैसे खयाल रहेगा?
जरूरी नहीं है कि ठीक दस ही मिनट हो। बारह मिनट हो जाए तो हर्ज नहीं, पंद्रह मिनट हो जाए तो हर्ज नहीं। आप सिर्फ इतना ही अनुमान रखें कि दस मिनट से कम न हो। वह दो-चार दिन में आपको अनुमान हो जाएगा कि दस मिनट से कम न हो बस। ज्यादा कितना ही हो जाए, हर्ज नहीं है।
फिर तीन महीने तक ही चारों चरण पूरे करने पड़ेंगे। जैसे ही आपकी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी--किसी की तीन सप्ताह में भी हो सकती है, किसी की तीन दिन में भी हो सकती है, लेकिन आमतौर से तीन महीने लग जाएंगे प्रक्रिया के पूरे प्रवेश करने में--तो दूसरा और तीसरा चरण अपने आप गिर जाएंगे। आप मिनट, दो मिनट श्वास लेंगे कि सीधे चौथे चरण में प्रवेश हो जाएगा। वे जरूरी नहीं रह जाएंगे। इसलिए तीन महीने तक आपको जरूर श्रम लेना है। और अपनी तरफ से बंद नहीं करना है। जब कोई चरण अपने आप गिर जाए, तब बात अलग। आप अपनी तरफ से जारी रखें।
एक मित्र ने रात्रि के निरीक्षण के प्रयोग के, साक्षी के प्रयोग के संबंध में पूछा है कि भगवान, यहां हम आप पर साक्षी का प्रयोग करते हैं, घर क्या करेंगे?
सवाल साक्षी होने का है। यह साक्षी होना किसी भी चीज पर हो सकता है।
रात्रि का अपलक निरीक्षण का प्रयोग--एक मित्र ने पूछा है कि मेरे बिना वे कैसे करेंगे?
सवाल मेरा नहीं है। खुले आकाश की तरफ चालीस मिनट बिना आंख झपके देखते रहें। और बहुत अदभुत परिणाम होंगे। खुले आकाश की तरफ चालीस मिनट देखते-देखते आप अचानक पाएंगे कि आप आकाश का हिस्सा हो गए हैं, आकाश आपके भीतर प्रवेश कर गया। समुद्र के किनारे बैठ जाएं, चालीस मिनट तक अपलक समुद्र को देखते रहें और आप पाएंगे कि आप और लहरें एक हो गईं। वृक्षों को देखते रहें और यही हो जाएगा। कुछ भी उपयोग किया जा सकता है। और जिन्हें मेरी तरफ देखने से एक अंतर्संबंध निर्मित हुआ है--जैसा आज बहुत से मित्रों ने आकर मुझे खबर दी कि उन्हें बहुत कुछ प्रतीति हुई है--वे मेरा चित्र रखेंगे, तो भी मेरा काम पूरा हो जाएगा।
एक मित्र ने पूछा है कि भगवान, आपके साथ के बिना, पांचवें चरण में आपके माध्यम के बिना हमारा क्या होगा?
नहीं, मेरी कोई भी जरूरत नहीं है। तीसरे चरण के बाद आपकी भी जरूरत नहीं है। तीसरे चरण तक आपकी जरूरत है। तीसरे चरण के बाद आपकी भी जरूरत नहीं है। चौथा चरण घटित होगा। और चौथे चरण के बाद पांचवां चरण अपने से घटित होगा, उसकी आपको चिंता लेने की जरूरत नहीं है। किसी माध्यम की कोई जरूरत नहीं है। तीन चरण आप पूरे कर सकें पूरी शक्ति से, तो बाकी अपने आप पीछे से आ जाएगा छाया की भांति। फिर भी, अगर आप चौथे चरण तक पहुंच सकते हैं, तो कभी भी मेरी जरूरत मालूम पड़े तो मैं कहीं भी मौजूद हो सकता हूं। आपका स्मरण भर काफी होगा। चौथे चरण तक पहुंच सकते हैं तो! अगर चौथे चरण में आपका प्रवेश हो जाता है, तो मेरी मौजूदगी किसी भी क्षण पुकारी जा सकती है। उसमें बहुत कठिनाई नहीं है। वह बहुत सरल सी बात है।
असल में हम एक-दूसरे को शरीर से ही देखने के आदी हैं, इसलिए कठिनाई है। हमारे और जीवन-तल भी हैं, हमारी और यात्राएं भी हैं, हम और तरह से भी जुड़ते हैं जहां समय और काल और क्षेत्र, स्पेस और टाइम का कोई संबंध नहीं रह जाता है।
अगर चौथे चरण तक आप पहुंच जाते हैं, तो मुझसे कुछ सवाल भी पूछना हो तो आप पूछ सकते हैं सिर्फ अपने मन में, और उत्तर भी पा सकते हैं। वह बहुत कठिन नहीं है। लेकिन सवाल असल में चौथे चरण में प्रवेश का है।
तो तीन चरण आप पूरी ताकत से करें, चौथे चरण में भी प्रवेश हो जाएगा। और आज की तो यह अंतिम बैठक है इसलिए बहुत कुछ घटित होगा। करीब सत्तर प्रतिशत लोगों को बहुत कुछ अनुभव इन तीन दिनों में हुआ है। जिनको कुछ भी अनुभव हुआ है, आज उनके अनुभव की चरम स्थिति भी प्रकट होगी। तो आज तो बहुत गहराई से प्रयोग में जाना है। जिनको थोड़े ही अनुभव हुए हैं, वे भी आज गहरे अनुभव में उतर सकते हैं। जिनको कोई अनुभव नहीं हुआ है, वे भी आखिरी प्रयास करने की कोशिश करें। कई बार ऐसा होता है कि जमीन हम खोदते हैं और लंबा खोदते हैं और पानी नहीं निकलता, लेकिन कभी एक कुदाली और कि पानी निकल आता है। कई बार जरा सी मिट्टी की पर्त रह जाती है और हम लौट आते हैं।
तो जिनको नहीं कुछ हो सका है--बहुत थोड़ी संख्या, तीस प्रतिशत लोगों की है, जिनको नहीं कुछ हो सका है--वे आखिरी प्रयास और करें। और आज और भी अर्थों में बहुत कुछ हो सकेगा, क्योंकि तीन दिन के परिणाम ने इस जगह को एक विशेषता दे दी है। और आज तो पूरी शक्ति से पुकार उठेगी। तो जिनको नहीं हुआ है, उनको बाकी लोगों की मौजूदगी भी फायदा पहुंचाने का कारण बन सकती है। इसलिए आज अपनी पूरी शक्ति को पुकार कर, अपने पूरे संकल्प को भर कर और परमात्मा से पूरी प्रार्थना करके रात्रि का प्रयोग करना है।
आज के इस आखिरी प्रयोग में दो-तीन बातें समझ लेनी जरूरी हैं।
एक तो, जिन लोगों ने भी इन तीन दिन के प्रयोग में वस्त्र अलग किए हों, वे आज पहले से ही वस्त्र अलग कर देंगे तो उचित होगा, वह उनके लिए बाधा नहीं रह जाएगी। दूसरा, जो लोग भी खड़े होना चाहते हैं, वे दीवाल के किनारे तीनों तरफ खड़े हो जाएंगे ताकि बीच में बैठने वाले लोगों को मैं दिखाई पड़ना बंद न हो जाऊं। तीसरी बात, आज एक भी व्यक्ति दर्शक की हैसियत से भीतर नहीं रहेगा, अन्यथा उसे नुकसान भी हो सकता है। आज कोई भी व्यक्ति दर्शक की हैसियत से भीतर नहीं रहेगा। अगर किसी को दर्शक की हैसियत से होना है तो ऊपर गैलरी पर चला जाए, भीतर भूल कर न रहे। इससे दूसरों को ही नुकसान नहीं, उसको भी नुकसान हो सकता है।
जिन लोगों ने वस्त्र निकाले थे, वे आज पहले से ही अलग कर देंगे, ताकि उन्हें बीच में वस्त्र अलग करने का कष्ट न रह जाए--एक। जिन लोगों ने गहरा प्रयोग किया है और वस्त्र निकालने की मनःस्थिति आ गई थी--मुझे कई लोगों ने आकर कहा है कि वस्त्र निकालने की मनःस्थिति थी, लेकिन वे संकोच कर गए, रोक गए--वे भी आज आखिरी प्रयोग में अलग उनको फेंक देंगे तो उचित होगा। जिन लोगों को बहुत गहरा प्रयोग होने वाला है वे ऊपर आ जाएंगे। और ऊपर जो लोग बैठे हों वे नीचे सामने आ जाएंगे। और जिनको खड़े होना है वे दीवाल के किनारे चारों तरफ खड़े हो जाएं, कोई व्यक्ति बीच में नहीं घूमेगा। जिनको खड़ा होना है, जो बाद में खड़े हो जाते हैं, वे अभी से दीवाल के किनारे खड़े हो जाएं। बीच में सिर्फ बैठने वाले लोग रहेंगे, उनको फिर खड़े नहीं होना है। जिनको जरा भी खयाल हो कि बीच में मैं खड़ा हो सकता हूं, वे दीवाल के किनारे आ जाएं। ऊपर जो लोग बैठे हों और जिनको खयाल हो कि वे बहुत गति में नहीं आ सकेंगे, वे नीचे सामने आ जाएं। ऊपर तो सिर्फ जो तीव्र गति में आने वाले हैं वे ही लोग होंगे।
हां, दीवाल के किनारे खड़े हो जाएं खड़े होने वाले लोग, तीनों तरफ दीवाल के किनारे हो जाएं। दरवाजा बंद कर दें वहां और दीवाल के किनारे खड़े हो जाएं। और ध्यान रहे, अपनी जगह से नहीं हटना है आपको, अपनी जगह पर ही होना है। शीघ्र कर लें, फिर मैं दो-तीन बातें और कहने वाला हूं, वे समझ लें। दीवाल के किनारे चले जाएं। जिनको बैठे ही रहना है, वे ही लोग बीच में रहेंगे, बाकी लोग किनारे हट जाएं।
देखें, अपनी जगह से कोई इधर-उधर नहीं घूमेगा। किसी को बीच में नहीं घूमना है। अपनी ही जगह पर होना है। जो बैठा है, वह बैठा रहेगा; जो खड़े हैं, वे खड़े रहेंगे। अभी खड़े हो जाएं, जिनको जरा भी खयाल हो कि उनको खड़े होने में सुविधा होगी, वे किनारे पर खड़े हो जाएं। हां, किनारे पर हट जाइए, यहां बीच में नहीं खड़े होंगे।
दो-तीन बातें समझ लें। एक तो, तीन दिन हमने पूरी शक्ति लगाई, आज एक नया सूत्र उसमें जोड़ देना है। यह आखिरी विदा की बैठक है। आज जो भी आप करेंगे, पूरे आनंद-भाव से भी करना है, सिर्फ शक्ति का भाव ही नहीं। अगर आप हंस रहे हैं, तो सिर्फ शक्ति काफी नहीं है, उसमें आनंद के भाव से हंसें। अगर नाच रहे हैं, तो सिर्फ शक्ति ही काफी नहीं है, उसको आनंद का भाव भी दे दें, आनंद से नाचें। आपके चेहरे, आपके हाथ-पैर, आपकी आवाज, आपकी पुकार, उस सब में आपका आनंद भी प्रकट हो, आपकी शक्ति ही केवल प्रकट न हो। बहुत कुछ घटित होगा। जैसे ही हम चार्ज्ड हो जाएंगे, इस कमरे में आज बहुत कुछ होगा। इसलिए जो मैं कह रहा हूं उसे ठीक से समझ लें। कल मैंने पंद्रह मिनट में ही प्रयोग को पूरा किया, जो तीस मिनट करना चाहिए था। कुछ लोग बीच में खड़े हो गए, उनकी वजह से बाधा पड़ी, लोगों को मैं दिखाई पड़ना बंद हो गया। तो कोई बीच में खड़ा नहीं होगा।
ध्यान मेरे ऊपर रहेगा; आंखें झपकनी नहीं हैं, पूरे समय मुझे देखते रहना है; और फिर जो भी आपको हो उसे करना है। हो सकता है किसी को कुछ भी करते हुए मालूम न हो, तो उसके पड़ोस में जो हो रहा है उसकी धुन में उसे सम्मिलित हो जाना है, पड़ोसी को उसकी प्रतिध्वनि और उत्तर दे देना। लेकिन पूरे भवन में कोई भी आदमी खाली न रह जाए, सभी कुछ कर रहे हों। तीस मिनट ताकि उनके करने के हों, फिर पीछे हम दस मिनट विश्राम में चले जाएंगे। जो तीस मिनट विश्राम में बैठा रहेगा, वह पीछे के दस मिनट का राज और रहस्य नहीं पा सकेगा।
ध्यान रहे, शक्ति के साथ आनंद भी सम्मिलित हो जाए। कोई आनंद से नाचेगा, कोई आनंद से हंसेगा, कोई आनंद से रोएगा, कोई आनंद से चिल्लाएगा, कोई आनंद से गीत गाने लगेगा, पर वह सब आनंद के भाव शक्ति के साथ उसे जोड़ देना। यह विदा की बैठक है, वह आनंद के भाव से हम परमात्मा को धन्यवाद भी दे सकेंगे। और आज अपनी पूरी शक्ति लगा देनी है, कुछ भी बचाना नहीं है।