BHAGWAD GEETA

Geeta Darshan Vol-12 10

Tenth Discourse from the series of 11 discourses - Geeta Darshan Vol-12 by Osho. These discourses were given during MAR 13-22 1973.
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जीवन उतना ही नहीं है, जितना आप उसे जानते हैं। आपको जीवन की सतह का भी पूरा पता नहीं है, उसकी गहराइयों का, अनंत गहराइयों का तो आपको स्वप्न भी नहीं आया है। लेकिन आपने मान रखा है कि आप जैसे हैं, वह होने का अंत है।
अगर ऐसा आपने मान रखा है कि आप जैसे हैं, वही होने का अंत है, तो फिर आपके जीवन में आनंद की कोई संभावना नहीं है। फिर आप नरक में ही जीएंगे और नरक में ही समाप्त होंगे।
जीवन बहुत ज्यादा है। लेकिन उस ज्यादा जीवन को जानने के लिए ज्यादा खुला हृदय चाहिए। जीवन अनंत है। पर उस अनंत को देखने के लिए बंद आंखें काम न देंगी। जीवन विराट है और अभी और यहीं जीवन की गहराई मौजूद है। लेकिन आप अपने द्वार बंद किए बैठे हैं। और अगर कोई आपके द्वार भी खटखटाए, तो आप भयभीत हो जाते हैं। और भी मजबूती से द्वार बंद कर लेते हैं।
मैंने आज आपको बुलाया है। मैं आपके द्वार नहीं खटखटाऊंगा, बल्कि आपके द्वार तोड़ ही डालूंगा। पर आपकी तैयारी चाहिए। आप अगर भयभीत रहे, तो आप वंचित रह जाएंगे। भय से अगर आपने आंखें बंद रखीं, तो सूरज निकलेगा भी, तो भी आपके लिए नहीं निकलेगा। आप अंधेरे में ही रह जाएंगे।
यह प्रयोग तो साहस का प्रयोग है। और केवल उन लोगों के लिए है, जो अपने से ऊब चुके हैं भलीभांति। और जो अपने से अच्छी तरह परेशान हो चुके हैं। और जिन्होंने यह भलीभांति समझ लिया है कि जैसे वे हैं, वैसे ही रहने से कोई भी मार्ग नहीं है। तो बदलाहट हो सकती है। तो क्रांति आ सकती है।
सुना है मैंने कि दूर पहाड़ियों में बसा हुआ एक गांव था। खाई में बसा हुआ था, नीचाई पर था। वर्षा आती, नदियों में बाढ़ आती, गांव के घर बह जाते, खेती-बाड़ी नष्ट हो जाती, जानवर बह जाते, बच्चे डूब जाते। झंझावात आते, आंधियां आतीं, पहाड़ से पत्थर गिरते, लोग दब जाते और मर जाते।
उस गांव की जिंदगी बड़े कष्ट में थी। जिंदगी थी ही नहीं, बस मौत से लड़ने का नाम ही जिंदगी था। कभी वर्षा सताती, कभी तूफान सताते। और जीना दूभर था।
लेकिन उस पहाड़ी गांव के लोग मानते थे कि यही ढंग है एक जीने का, क्योंकि बचपन से वे इसी ढंग से परिचित थे। उनके बापदादे भी ऐसे ही जीए थे। और उनके बापदादों के बापदादे भी ऐसे ही जीए थे। यही मुसीबत उनकी कथाओं में थी। यही बाढ़ों का आना और डूब जाना, और पत्थरों का गिरना और मौत घटित होना, और जूझते-जूझते जन्मना और जूझते-जूझते मर जाना, यही उनके सारे पुराण थे।
लेकिन एक बार एक भटकता हुआ यात्री उस पहाड़ी गांव में पहुंच गया। और उसने कहा कि तुम नासमझ हो। तुम्हारी समस्याओं को हल करने का यह कोई उपाय नहीं है। तुम थोड़े अपने मकान ऊंचाइयों पर बनाओ। इस खाई-खंदक को छोड़ो। और इतने सुंदर पहाड़ तुम्हारे चारों तरफ हैं, इनके उतार पर अपने मकान बनाओ।
गांव के लोगों ने पूछा, क्या उससे हमारी समस्याएं हल हो जाएंगी? क्योंकि ऊंचे मकान बनाने से समस्याओं का क्या हल होगा! वर्षा तो आएगी, तूफान तो होंगे, नदियां तो बहेंगी। ये तो नहीं रुक जाएंगी!
उनका सवाल ठीक था। लेकिन उस यात्री ने हंसकर कहा कि तुम घबड़ाओ मत। तुम्हारी समस्याएं बदल जाएंगी, क्योंकि तुम ऊंचाई पर चले जाओगे। तुम नीचाई पर हो, इसलिए समस्याएं हैं। और यहीं, नीचाई पर रहकर अगर तुम समस्याओं को हल करना चाहते हो, तो तुम कभी हल न कर पाओगे।
गांव के लोग हिम्मतवर रहे होंगे। बड़ी हिम्मत की जरूरत है पुरानी आदतों को बदलने के लिए। उन्होंने ऊंचाइयों पर मकान बनाने शुरू कर दिए। और तब उस गांव के लोगों ने एक उत्सव मनाया और उन्होंने कहा, हमें आश्चर्य है कि हमें यह खयाल पहले क्यों न आया! नदियां अब भी बहेंगी, लेकिन हमारा कोई नुकसान न कर पाएंगी। पत्थर अब भी गिरेंगे, लेकिन अब हम खाई-खंदक में नहीं हैं।
आप जहां जी रहे हैं, वह एक खाई है, जहां सारी मुसीबतें गिरती हैं और आप परेशान होते हैं। यह प्रयोग आपको उस खाई से बाहर निकालकर ऊंचाइयों की तरफ ले चलने का है। लेकिन मुश्किल है पुरानी आदतों को छोड़ना; चाहे वे आदतें कितनी ही तकलीफ क्यों न देती हों।
क्रोध किसको तकलीफ नहीं देता? ईर्ष्या किसको नहीं जलाती? दुश्मनी से किसको आनंद मिला है? लेकिन हम आदी हैं। और अगर कोई कहे कि लाओ मैं तुम्हारा क्रोध ले लूं, तो भी हम संकोच करेंगे और कंजूसी दिखाएंगे।
यह प्रयोग इसीलिए है कि मैं आपसे आपकी सारी बीमारियां मांगता हूं। और आपको रास्ता भी बताता हूं कि आप कैसे वे बीमारियां मुझे दे सकते हैं। वे बीमारियां आपसे छूट सकती हैं, क्योंकि आप बीमारियां नहीं हैं, बीमारियां केवल आपकी आदत हैं। आदतें बदली जा सकती हैं। उन्हें आपने बनाया है, आप उन्हें मिटा सकते हैं।
लेकिन हमारे पास बीमारियों की राशि है। जन्मों-जन्मों से हमने न मालूम कितना उपद्रव भीतर इकट्ठा कर रखा है। कितने आंसू हैं भीतर, जो बहना चाहते थे और नहीं बह सके। कितनी चीख-पुकार है भीतर, जो प्रकट होना चाहती थी, और प्रकट नहीं हो पाई। कितना क्रोध है, कितनी आग है, जो भीतर जल रही है। और उस आग, घृणा, क्रोध, विक्षिप्तता के कारण आपका जीवन सदा एक ज्वालामुखी के ऊपर है। जिसमें कभी भी विस्फोट हो सकता है।
मनसविद कहते हैं कि हर आदमी पागल होने के किनारे ही खड़ा है। और कभी भी पागल हो सकता है। और वे ठीक कहते हैं। पागलपन करीब-करीब सामान्य हालत है। लेकिन मैं आपको एक रास्ता बताता हूं कि आपके भीतर जो भी दबा हो, उसे आप खुले आकाश में छोड़ दें।
किसी के ऊपर क्रोध करने की जरूरत नहीं है, क्रोध खुले आकाश में भी छोड़ा जा सकता है। भीतर जो पागलपन है, उससे किसी को नुकसान पहुंचाने की जरूरत नहीं है। पागलपन को हवा में एवोपरेट, वाष्पीभूत किया जा सकता है।
और जैसे ही आप अपने इस उपद्रव को फेंकने लगेंगे, वैसे ही आप पाएंगे, आपके सिर का बोझ हलका हुआ जा रहा है। और आपके आस-पास की दीवाल टूटती जा रही है। और आप आकाश के लिए खुल रहे हैं। और परमात्मा के लिए रास्ता बन रहा है।
यह प्रयोग समर्पण का प्रयोग है। इसमें आप अपने को छोड़ेंगे, तो ही कुछ हो पाएगा। आपकी बुद्धिमत्ता की इसमें जरूरत नहीं है। आप अपनी बुद्धिमत्ता से तो जी ही रहे हैं। परिणाम आपके सामने है। आप जो हैं, वह आपकी बुद्धिमत्ता का परिणाम है। उसे बुद्धिमत्ता कहें या बुद्धिहीनता कहें, कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन जो भी आप हैं, आपकी बुद्धिमानी का परिणाम है।
यह प्रयोग आपकी बुद्धिमानी का नहीं है। आपको अपनी बुद्धिमानी छोड़ देनी है। उससे आप जीकर काफी देख लिए। एक घंटेभर के लिए मुझे मौका दें कि मैं आपके भीतर प्रवेश कर सकूं और आपको बदल सकूं।
अगर आप राजी हुए, और थोड़ा-सा भी झरोखा आपने खोला, तो मैं एक ताजी हवा की तरह आपके भीतर प्रवेश कर सकता हूं। उसका स्पर्श आह्लादकारी होगा। मैं एक विद्युत-प्रवाह की तरह आपके भीतर आ सकता हूं, उसमें बहुत-सा कचरा जल जाएगा और सोना निखर उठेगा। लेकिन एक साहस आपको करना जरूरी है कि आप अपनी बुद्धिमानी नहीं बरतेंगे। आपकी बिलकुल जरूरत नहीं है।
वह जो फूल मैंने आपसे लाने को कहा है और कहा है कि ध्यान करते आना कि यह मेरा अहंकार है, वह इसीलिए कहा है। अगर पूरा भाव आपने किया है कि यह फूल मेरा अहंकार है, तो थोड़ी देर बाद जब मैं आपको कहूंगा कि अपने दोनों हाथ उठाकर पूरे मन से भाव करके कि यह फूल मेरा अहंकार है, उसे छोड़ दें। तो उस फूल के गिरते ही आपके भीतर का न मालूम कितना बोझ उसके साथ गिर जाएगा। आप हलके हो जाएंगे।
आपका अहंकार बाधा है। वह हट जाए, तो मैं एक तूफान की तरह यहां बह सकता हूं। और जो मैं कह रहा हूं, वह कोई प्रतीक की भाषा नहीं है। मैं कोई साहित्य की बात नहीं कह रहा हूं। मैं कोई मेटाफर में नहीं बोल रहा हूं। वस्तुतः एक तूफान की तरह मैं आपके आस-पास घूमूंगा। और जैसे कोई तूफान एक वृक्ष को पकड़ ले और उसे हिलाने लगे, और उसके सारे सूखे पत्ते गिर जाएं, और उसकी सारी धूल झड़ जाए, वैसा मैं आपको पकड़ लूंगा। और आप एक वृक्ष की तरह ही कंपने लगेंगे और आपका रोआं-रोआं स्पंदित हो उठेगा। आपकी प्राण-ऊर्जा जागने लगेगी और आपके भीतर शक्ति का एक प्रवाह शुरू हो जाएगा।
जैसे ही आप अपने को छोड़ेंगे, मैं काम करना शुरू कर दूंगा। आपका छोड़ना पहली शर्त है। और उसके बाद आपको कुछ भी नहीं करना है। चीजें होनी शुरू हो जाएंगी। आपको एक ही काम करना है कि आप कुछ मत करना। आप सिर्फ छोड़ देना और प्रतीक्षा करना।
जैसे ही मेरी शक्ति आपकी शक्ति से मिलेगी, आपकी श्वास में परिवर्तन शुरू होगा। वह पहला लक्षण होगा कि आप मुझसे मिल गए हैं। ठीक रास्ते पर हैं। आपने मेरी तरफ छोड़ दिया है अपने आपको। जैसे ही आप छोड़ेंगे, आपकी श्वास बदलने लगेगी। आपकी श्वास तेज और गहरी होने लगेगी। जब यह श्वास तेज और गहरी होने लगे, तो समझना कि पहला लक्षण है। और उसे रोकना मत। उसे और गहरा हो जाने देना। उसे और सहयोग दे देना, ताकि वह पूरी तरह आपको कंपाने लगे, और आपके भीतर चलने लगे, जैसे कि लोहार की धौंकनी चलती है।
वह श्वास आपके भीतर बहुत कुछ लाएगी और आपके भीतर से बहुत कुछ बाहर ले जाएगी। वह श्वास मुझे आपके भीतर लाएगी और आपके सारे कचड़े, कूड़ा-करकट को बाहर फेंकेगी। वह श्वास आपके भीतर विराट का संस्पर्श बनने लगेगी और आपकी क्षुद्रता को बाहर फेंकने लगेगी। आती श्वास में मैं आऊंगा और जाती श्वास में आपसे कुछ ले जाऊंगा। इसलिए जितनी तेज श्वास हो सके, उतना लाभ होगा, क्योंकि उतनी ही तेजी से आप उलीचेंगे। तो जब आपकी श्वास तेज होने लगे, तो साथ देना और बाधा मत डालना।
दूसरा अनुभव, जैसे ही श्वास तेज होगी, आपको तत्काल लगेगा कि आपके शरीर में एक नई विद्युत, एक इलेक्ट्रिसिटी, एक जीवन ऊर्जा दौड़ने लगी। रोआं-रोआं कंपना चाहेगा, नाचना चाहेगा। शरीर में बहुत-सी प्रक्रियाएं शुरू हो जाएंगी। मुद्राएं बनने लगेंगी। कोई एकदम से खड़ा होना चाहेगा। किसी का सिर घूमने लगेगा। किसी के हाथ ऊपर उठ जाएंगे। कुछ भी हो सकता है। और जो भी हो, उसे आपको रोकना नहीं है, होने देना है। आप जैसे बह रहे हैं एक नदी में। आपको तैरना जरा भी नहीं है। नदी की धार जहां ले जाए।
आपको पता नहीं है कि क्या हो रहा है, रोकना मत। लेकिन मुझे पता है कि क्या हो रहा है। इसलिए आपसे कहता हूं, रोकना मत। अगर आप बहुत क्रोधी हैं, तो आपके दोनों हाथों की अंगुलियों में, मुट्ठियों में क्रोध समाविष्ट है। और जब मैं आपको पकडूंगा, तो वह क्रोध आपकी मुट्ठियों से निकलना शुरू होगा; आपके हाथ कंपने लगेंगे। अगर आप बहुत चिंता से भरे हुए व्यक्ति हैं, तो आपका मस्तिष्क बहुत बोझिल है। आपका सिर कंपने लगेगा और उस सिर से चिंताएं गिरनी शुरू हो जाएंगी। अगर आप बहुत कामुक व्यक्ति हैं, तो आपके काम-केंद्र पर बहुत जोर से ऊर्जा का प्रवाह शुरू होगा। आप घबड़ाना मत। वह प्रवाह ऊपर की तरफ उठेगा, क्योंकि मैं उसे ऊपर की तरफ खींच रहा हूं। वही कुंडलिनी बन जाती है।
आपकी पूरी रीढ़ कंपने लगेगी। उसके साथ-साथ आपका पूरा शरीर कंपने लगेगा। लगेगा कि कोई आपको आकाश की तरफ खींच रहा है। निश्चित ही, मैं आपको आकाश की तरफ खींचूंगा। और अगर आपने बाधा न दी, तो आप इस पूरे प्रयोग में पाएंगे कि आप वेटलेस हो गए; आपका कोई वजन न रहा। जमीन का ग्रेविटेशन, जमीन की कशिश कम हो गई। लेकिन आपको छोड़ना पड़ेगा।
श्वास बढ़ेगी, फिरआपकी प्राण-ऊर्जा बढ़ेगी। और तीसरा, जब संपर्क और गहरा होगा.।
(रोने-चिल्लाने की आवाजें।)
अभी रुकें; पहले पूरी बात समझ लें। और जब संस्पर्श पूरा गहरा होगा.।
(चिल्लाने की आवाजें।)
उन्हें थोड़ा सम्हाल दें। अभी रुकें। तो आपके भीतर से आवाजें निकलनी शुरू हो जाएंगी। चीत्कार, हुंकार, या कोई मंत्र का उदघोष, या रोना, चिल्लाना, हंसना, या स्क्रीम, सिर्फ चिल्लाहट, चीख, उसको रोकना मत। उसे हो जाने देना। उसके साथ ही आपके भीतर के न मालूम कितने रोग बाहर हो जाएंगे। आप हलके हो जाएंगे--एक बच्चे की तरह कोमल, और हलके, और निर्दोष।
यह पहला चरण है। बीस मिनट तक यह प्रयोग चलेगा। यहां संगीत चलता रहेगा। आपको एकटक मेरी तरफ देखना है, ताकि मैं आपकी आंखों से प्रवेश कर सकूं। छोड़ना है अपने को और मेरी तरफ देखना है। फिर शेष काम मैं कर लूंगा।
बीस मिनट के बाद संगीत बंद हो जाएगा। और तब आप जिस अवस्था में होंगे, वैसे ही रुक जाना है। कोई अगर खड़ा हो गया हो, तो वह वैसा ही रुक जाएगा। किसी का हाथ अगर आकाश की तरफ उठा हो, तो हाथ को वहीं छोड़ देना है। किसी की गरदन झुक गई है, तो वैसे ही रह जाना है। फिर जो भी अवस्था आपकी हो। बीस मिनट की प्रक्रिया के बाद, मृत, जैसे आप अचानक पत्थर हो गए, वैसे ही रह जाना है। जैसे ही मैं आवाज दूंगा कि रुक जाएं, वैसे ही रुक जाना है। आंख बंद कर लेनी है।
दूसरे चरण में बीस मिनट आंख बंद करके पत्थर की मूर्ति की तरह हो जाना है। कितना ही मन हो कि जरा पैर हिलाऊं, कि जरा आंख खोलूं, कि जरा हाथ बदल लूं, कि जरा करवट बदल लूं, इस मन को रोकना। यह मन बेईमान है। वह जो भीतर शक्ति जगी है, उससे डिस्ट्रैक्ट कर रहा है, उससे हटा रहा है। बिलकुल बीस मिनट पत्थर की तरह रह जाना। और आप रह सकेंगे। अगर पहले बीस मिनट आपने शरीर को पूरे प्रवाह में बहने दिया, तो दूसरे बीस मिनट में आपको कोई बाधा नहीं आएगी। आप मूर्तिवत हो जाएंगे।
ये दूसरे बीस मिनट में आपके मौन से मैं काम करूंगा। और आपसे मौन में मिलूंगा। शब्दों से मैंने बहुत-सी बातें आपसे कही हैं। लेकिन जो भी महत्वपूर्ण है, वह शब्दों से कहा नहीं जा सकता। और जो भी गहरा है, वह कभी शब्दों से कहा नहीं गया है। उसके लिए तो मौन में ही संवाद हो सकता है। अगर आप प्रयोग में ठीक से उतरे, तो मौन में आपसे कुछ कह सकूंगा, और मौन में कुछ कर भी सकूंगा।
दूसरे चरण में इस बीस मिनट की गहरी शांति में आपको अपूर्व अनुभव होंगे। आनंद से हृदय भर जाएगा। जैसा आनंद आपने कभी भी न जाना होगा। और ऐसा सन्नाटा और ऐसा शून्य और शांति भीतर उतर आएगी, जो बिलकुल अपरिचित है। आप अपने ही भीतर एक ऊंचाई पाएंगे, जिससे आप कभी भी संबंधित नहीं थे। आप खाई से ऊपर हट गए हैं पहाड़ की चोटियों की तरफ। और वहां आपको नए प्रकाश का अनुभव होगा। और परमात्मा की असीम उपस्थिति प्रतीत होगी।
तीसरे बीस मिनट में अब आपको अपने आनंद को प्रकट करने का अवसर होगा। तब जो भी आपकी मौज में, अहोभाव में पैदा हो जाए--आप नाचना चाहें, गाना चाहें, हंसना चाहें या मौन रहना चाहें--जो भी होना चाहे, बीस मिनट आप परमात्मा के अनुग्रह में डूब जाएंगे।
पहले बीस मिनट में आपकी बीमारियों से आपको मुक्त करना है। दूसरे बीस मिनट में आपके मौन में आपके आनंद को जन्म देना है। तीसरे बीस मिनट में आपके अहोभाव, कृतज्ञता के बोध को विकसित करना है। ये तीन चरण हैं। और आपको सिर्फ इतना करना है कि आप बाधा मत डालना; आप सहयोगी रहना।
कुछ साधारण सूचनाएं। बहुत कुछ होना शुरू होगा, आप दूसरे पर ध्यान मत देना। नहीं तो आप चूक जाएंगे। बच्चों जैसा मत करना। आप छोटे बच्चे नहीं हैं। बगल में अगर कोई चीखने लगे, तो आपको देखने की जरूरत नहीं है; चीखने देना। कोई बगल में नाचने लगे, तो आपको लौटकर देखने की जरूरत नहीं है। नहीं तो आप चूक जाएंगे। उतनी-सी बाधा और आपसे मेरा संबंध टूट जाएगा। आप मेरी तरफ ही देखते रहना। आस-पास कुछ भी हो।
यह पूरा स्थान एक तूफान, एक विक्षिप्तता की स्थिति में हो जाएगा। आप एक ही याद रखना कि आपका मुझसे संबंध है और यहां कोई भी नहीं है। कितना ही मन हो कि जरा यहां देखें, वहां देखें, इस फिजूल बात को रोकना। क्योंकि जिंदगीभर से यहां-वहां देख रहे हैं, उससे कुछ हो नहीं गया है। और आपके देखने से कुछ होगा भी नहीं। आप चूक जाएंगे, समय व्यर्थ हो जाएगा। एक अवसर जरा-सी बचकानी बात से खोया जा सकता है। तो यहां-वहां मत देखना।
और बीस मिनट, शुरू के बीस मिनट आपको एकटक देखना है, पलक झुकानी नहीं है। आंख से आंसू बहने लगें, फिक्र मत करना। कोई आंखें खराब नहीं हो जाने वाली हैं। सिर्फ ताजी हो जाएंगी। थोड़ी धूल बह जाएगी, स्वच्छ हो जाएंगी। आप देखते ही रहना। इतना थोड़ा-सा बल रखना कि मेरी तरफ देखते ही रहें, क्योंकि आंख के द्वारा ही मैं सरलता से प्रवेश कर सकूंगा।
ये तीन चरण खयाल में रखने हैं।
अब हम शुरू करेंगे। आप जो फूल अपने साथ ले आए हैं, उसे दोनों हाथों के बीच में ले लें। दि फ्लावर दैट यू हैव ब्राट हियर, पुट इट बिट्‌वीन योर टू पाम्स एंड क्लोज दि पाम्स। दोनों हथेलियों के बीच में फूल को ले लें और हथेलियों को बंद कर लें। और एक बार और पूरे मन से भाव करें कि मेरा अहंकार इस फूल में केंद्रित है। नाउ वन्स मोर प्रोजेक्ट योर ईगो इन दिस फ्लावर एंड फील दिस फ्लावर इज़ योर ईगो।
नाउ रेज योर बोथ हैंड्‌स अपवर्ड्‌स। दोनों हाथ ऊपर उठा लें फूल के साथ। फूल को ऊपर ले लें। दोनों हाथ ऊपर ले लें। आखिरी भाव करें कि यह फूल मेरा अहंकार है और मैं इस अहंकार को छोड़ता हूं। और फूल को दोनों हाथों से जमीन की तरफ छोड़ दें। नाउ ड्राप दि फ्लावर एंड विद दिस ड्रापिंग आफ दि फ्लावर योर ईगो ड्राप्स।
अब मेरी ओर देखें। नाउ स्टेयर एट मी फार ट्‌वेन्टी मिनट्‌स। डोंट क्रिएट एनी बैरियर। सरेंडर टुवर्ड्‌स मी एंड अलाउ मी टु वर्क।
(चीखना, चिल्लाना, रोना आदि की तीव्र आवाजें। . बीस मिनट तक प्रयोग जारी रहा।)
रुक जाएं! नाउ स्टाप कंप्लीटली! रुक जाएं जैसे हैं। आंख बंद कर लें। क्लोज योर आइज एंड स्टाप कंप्लीटली, नो मूवमेंट, नो न्वाइज। जरा भी आवाज नहीं, शरीर को भी बिलकुल रोक लें। शक्ति जाग गई, अब उसे भीतर मौन में काम करने दें। आंख बंद कर लें, कोई भी आंख खुली न रह जाए। आंख बंद करें। क्लोज योर आइज एंड अलाउ दि इनर्जी टु वर्क विदिन। बिलकुल चुप, जरा भी आवाज नहीं, ताकि मैं आपके मौन में काम कर सकूं।
बीस मिनट के लिए ऐसे हो जाएं जैसे यहां मरघट है। सिर्फ लाशें रह गईं। फार ट्‌वेन्टी मिनट्‌स नाउ बी टोटली साइलेंट, एज इफ यू हैव गान डेड। कोई यहां-वहां न हिले, कोई चले-फिरे नहीं। जो जहां है, बिलकुल मुर्दे की भांति हो जाए। जो लोग देखने आ गए हों, वे भी कृपा करके आंख बंद कर लें और कम से कम बीस मिनट के लिए शांत हो जाएं। हिलें नहीं।
मुझे एक मौका दें कि आपकी शांति में प्रवेश कर सकूं, और आपके हृदय में आनंद का फूल खिला सकूं। नाउ अलाउ मी टु वर्क इन योर साइलेंस।
(दूसरे बीस मिनट तक सब ओर गहन सन्नाटा रहा।)
एक गहरी शांति में उतर गए हैं। एक गहरे आनंद का अनुभव। यू हैव एंटर्ड ए न्यू डायमेंशन ऑफ साइलेंस। दूसरा चरण पूरा हुआ। दि सेकेंड स्टेप इज़ ओवर, नाउ यू कैन एंटर दि थर्ड। अब तीसरे में प्रवेश करें।
जो आनंद का अनुभव हुआ है, उसे प्रकट कर सकते हैं। जैसे भी प्रकट करने का भाव आ जाए। नाउ यू कैन एक्सप्रेस योर ब्लिस, योर साइलेंस दि वे यू चूज। यू कैन सिंग, यू कैन डांस, यू कैन लाफ, व्हाटसोएवर यू फील लाइक डूइंग। एंड डोंट बी शाय, सेलिब्रेट इट। संकोच न करें और आनंद को प्रकट होने दें। जितना प्रकट करेंगे, उतना बढ़ेगा। जितना प्रकट करेंगे, उतना बढ़ेगा। डरें मत, आनंद चाहते हैं, तो आनंद को प्रकट होने दें। एक्सप्रेस इट, दि मोर यू एक्सप्रेस दि मोर इट ग्रोज।
(तीसरे बीस मिनट में संगीत बजता रहा। लोग नाचते, गाते रहे। उत्सव चलता रहा। फिर ओशो ने समापन के कुछ शब्द कहे।)
बस रुक जाएं। रुक जाएं, शांत हो जाएं, शांत हो जाएं। शांत हो जाएं और अपनी जगह पर बैठ जाएं। शांत हो जाएं और अपनी जगह पर बैठ जाएं। मौन चुपचाप अपनी जगह पर बैठ जाएं। मुझे कुछ बातें कहनी हैं, उनको कह दूं, फिर आप जाएं। शांत बैठ जाएं, आवाज न करें, भीड़ न करें यहां पास, शांत बैठ जाएं। वहां जगह न हो, तो बाहर निकल जाएं, किनारे पर बैठ जाएं।
देखें, बीच में बाहर से आप लोग आ गए हैं, तो बाहर वापस लौट जाएं, किनारे पर बैठ जाएं। शांत हो जाएं। देखें, बात न करें, अपनी-अपनी जगह बैठ जाएं। जगह न हो, तो बाहर निकल जाएं, किनारे पर बैठ जाएं।
बाहर निकलिए वहां से। समय खराब मत करें, बाहर निकल जाएं। वहां बीच में जगह न हो, तो बाहर हो जाएं। जैसे भीतर आ गए हैं, वैसे बाहर हो जाएं। बातचीत बंद करें। थोड़ा आगे हट आएं, वहां पीछे बैठने की जगह हो जाएगी। बैठ जाएं, अगर आगे जगह न हो, तो थोड़ा आगे हट आएं। आप लोग थोड़ा आगे हट आएं, तो पीछे जगह हो जाए।
बस ठीक है। बैठ जाएं, किसी भी तरह थोड़ी सी जगह बना लें और बैठ जाएं। देखिए, न बैठ सकें, तो खड़े रहें, अब बातचीत बंद कर दें।
जिन मित्रों ने प्रयोग किया, वे पुरस्कृत हुए। लेकिन नासमझों की कोई कमी नहीं है। और आप में बहुत हैं जो नासमझ हैं। कुछ बातें हैं, जो देखने से दिखाई नहीं पड़तीं। और मनुष्य के भीतर क्या घटित होता है, जब तक आपके भीतर घटित न हो, आपको पता नहीं चल सकता। अगर आप बाहर से देख रहे हैं, तो यह भी हो सकता है कि आपको लगे कि दूसरा आदमी पागलपन कर रहा है। लेकिन आखिरी हिसाब में आप पागल सिद्ध होंगे।
कुछ चीजें हैं, जो केवल भीतर ही देखी जा सकती हैं। और जब तक आप न उतर जाएं उसी अनुभव में, तब तक उसके संबंध में आप कुछ भी नहीं जान सकते। कोई प्रेम में है.।
(एक आदमी शोर मचा रहा है। ओशो समझाते हैं, चुप हो जाएं। खड़े रहने दो, उनको खड़े रहना है तो। लेकिन चुप रहें।)
कोई प्रेम में है, तो बाहर से आप कुछ भी नहीं जान सकते कि उसे क्या हो रहा है। कोई आनंद में है, तो भी बाहर से नहीं जान सकते कि क्या हो रहा है। कोई दुख में है, तो भी बाहर से नहीं जान सकते कि भीतर क्या हो रहा है। भीतर तो आप वही जान सकते हैं, जो आपके भीतर हो रहा हो।
इसलिए भक्त अक्सर पागल मालूम पड़े हैं। और लगा है कि उनके मस्तिष्क खराब हो गए हैं। लेकिन एक बार मस्तिष्क खराब करके भी देखना चाहिए। वह स्वाद ही और है। और अनुभव का रस एक बार आ जाए, तो आप दुनियाभर की समझदारी उसके लिए छोड़ने को राजी हो जाएंगे।
लेकिन कुछ छोटी-सी बातें बाधा बन जाती हैं। एक तो यही बात बाधा बन जाती है कि जो हमें नहीं हो रहा है, वह दूसरे को भी कैसे होगा!
आप मापदंड नहीं हैं और न कसौटी हैं। बहुत कुछ है, जो दूसरे को हो सकता है, जो आपको नहीं हो रहा। और ध्यान रखना, जो दूसरे को हो रहा है, वह आपको भी हो सकता है, थोड़े साहस की जरूरत है। और दुनिया में बड़े से बड़ा साहस एक है और वह साहस है इस बात का कि लोग चाहे हंसें, तो भी नए के प्रयोग करने का साहस।
बड़ा डर हमें होता है कि कोई क्या कहेगा! हम मरते वक्त तक लोगों का ही हिसाब रखते हैं कि कोई क्या कहेगा! इसी में हम जीवन को गंवा देते हैं। पड़ोसी क्या कहेंगे! कोई आपको नाचते और गाते और आनंदित होते देख लेगा, तो क्या कहेगा! पत्नी क्
या कहेगी; पति क्या कहेगा; बच्चे आपके क्या कहेंगे! तो आप दूसरों के मंतव्य इकट्ठे करते रहना और जीवन की धार आपके पास से बही जा रही है।
आपके पास से बुद्ध भी गुजरे हैं, और आप उनसे भी चूक गए। और आपके पास से कृष्ण भी गुजरे हैं, और उनसे भी आप चूक गए। और क्राइस्ट भी आपके पास से निकले हैं, लेकिन आपको उनकी कोई सुगंध न लगी। क्योंकि आप हमेशा यह खयाल कर रहे हैं कि कोई क्या कहेगा! आप नाहक ही वंचित हो जाते हैं।
फिर एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि धर्म तो एक प्रयोग है। और जब तक आप प्रयोग करके न देखें, तब तक आप कुछ भी नहीं कह सकते कि क्या हो सकता है। नए के प्रयोग को करके, देखकर ही निर्णय लेना चाहिए।
यहां दो तरह के लोग हैं। एक जिन्होंने प्रयोग किया है; और एक जो बिना प्रयोग यहां खड़े रहे। और मजे की बात यह है कि जिन्होंने प्रयोग किया है, वे शायद किसी से कुछ भी न कहें। लेकिन जिन्होंने प्रयोग नहीं किया है, वे तैयार हैं। उनका मन अब बिलकुल तैयार है कि वे जाकर लोगों को कहें कि वहां क्या हुआ।
अगर आपने प्रयोग न किया हो, तो किसी से मत कहना कि वहां क्या हुआ। क्योंकि जो भी आप बोलोगे, वह झूठ होगा। वह आपका अनुभव नहीं है। आपने अनुभव किया हो, तो ही लोगों को कहना कि क्या हुआ, क्योंकि उस बात में कोई सच्चाई है। लेकिन हम ईमानदारी से जैसे जरा भी संबंधित नहीं रहे हैं। और हमारा सारा व्यक्तित्व झूठा हो गया है।
इधर मैं देखता हूं। इधर मैंने देखा, सैकड़ों लोग थे जो हिल रहे थे, लेकिन रोक भी रहे थे। कहीं सच में ही कोई चीज कंपा न जाए!
क्या रोक रहे हैं? आपके पास बचाने को भी क्या है? बड़ा मजा तो यह है कि बचाने को भी कुछ होता, तो भी कोई बात थी। बचाने को कुछ भी नहीं है। आप खो क्या देंगे? आपके पास है क्या, जो नष्ट हो जाएगा? जो भी आपके पास है, वह नष्ट होने योग्य है। लेकिन उसी को बचा रहे हैं!
सुना है मैंने कि फ्रांस में क्रांति हुई, तो बेस्टिले के किले में, जहां कि आजन्म अपराधियों को रखा जाता था, क्रांतिकारियों ने दीवालें तोड़ दीं, और वहां के हजारों कैदियों की जंजीरें तोड़ दीं, और उन्हें मुक्त कर दिया। लेकिन वे कैदी आजन्म कैदी थे। कोई बीस वर्ष से बंद था, कोई चालीस वर्ष से, कोई पचास वर्ष से भी बंद था। उनके हाथों और पैरों की जंजीरें सदा के लिए डाली गई थीं। जब वे मरेंगे, तभी उनकी जंजीरें निकलेंगी।
क्रांतिकारियों ने उनकी जंजीरें तोड़ दीं; उन्हें मुक्त कर दिया। और सोचा कि वे बड़े आनंदित होंगे। लेकिन आपको पता है क्या हुआ! आधे कैदी सांझ होते तक वापस लौट आए और उन्होंने कहा, बाहर हमें अच्छा नहीं लगता है। और उन्होंने कहा कि बिना जंजीरों के हम सो भी न सकेंगे। तीस साल, चालीस साल से जंजीरों के साथ सो रहे थे। अब हमें नींद भी न आएगी। और जंजीरें अब जंजीरें नहीं हैं, हमारे शरीर का हिस्सा हो गई हैं। हमारी जंजीरें वापस लौटा दो। और हमारी जो काली कोठरियां हैं, वे ठीक हैं, क्योंकि सूरज की रोशनी आंख को बहुत खलती है। और फिर इस बाहर की दुनिया में जाकर हम करें भी क्या? हमारे सारे संबंध टूट चुके हैं। हमें कोई पहचानता नहीं। हमारा कोई नाता-रिश्ता नहीं है। यह कारागृह ही हमारा अब घर है। और हम यहीं मरना चाहते हैं।
क्रांतिकारियों ने कभी सोचा भी नहीं था कि कारागृह के कैदी भी वापस लौट आएंगे! उन्होंने सोचा भी नहीं था कि स्वतंत्रता को कोई ठुकराकर वापस लौट आएगा। लेकिन कारागृह से भी मोह हो जाता है और जंजीरों से भी प्रेम बन जाता है।
हम इसी तरह के लोग हैं। हमारा दुख भी हम से छोड़ते नहीं बनता। अगर आप रोना भी चाहते हैं, तो भी रोकते हैं। हंसना भी चाहते हैं, तो भी रोकते हैं। आप कुछ भी छोड़ नहीं सकते। आपकी जंजीरें बड़ी प्रीतिकर हो गई हैं। वे आभूषण मालूम होती हैं। और जब तक आप इन जंजीरों से भरे रहेंगे, परमात्मा का, स्वतंत्रता का आकाश आपको उपलब्ध नहीं हो सकेगा। आपको जंजीरें तोड़नी ही पड़ेंगी। आपको कटघरे तोड़ने ही पड़ेंगे। आपको फेंकना ही पड़ेगा बोझ, जो आप सिर पर लिए हैं। क्योंकि परमात्मा की यात्रा केवल उनके लिए है, जो निर्बोझ हैं, जो हलके हैं। भारी लोगों के लिए वह यात्रा नहीं है।
एक छोटा-सा प्रयोग था, आप न भी कर पाए हों हिम्मत, तो कुछ खो नहीं दिया। घर जाकर अकेले में हिम्मत करने की कोशिश करना। यहां दूसरों का डर रहा होगा। घर चले जाना। द्वार बंद कर लेना। मैं वहां भी आपके साथ काम कर सकता हूं। जैसा प्रयोग यहां किया है, एक फूल को रख लेना। उसमें भाव करना, अहंकार को छोड़ देना। और ठीक तीन चरणों में इस प्रयोग को घर पर होने देना। मैं वहां भी आ सकता हूं।
और एक बार आपको झलक मिल जाए, तो आप दूसरे आदमी हो जाएंगे। आपका नया जन्म हो जाएगा। और जब तक आपका नया जन्म न हो, तब तक आपका आज का जीवन और जन्म बिलकुल व्यर्थ है।
इस मुल्क में हम उस आदमी को पूजते रहे हैं, जिसको हम द्विज कहते हैं, ट्‌वाइस बॉर्न। द्विज हम उसे कहते हैं.। एक जन्म तो वह है, जो मां-बाप से मिलता है। वह असली जन्म नहीं है। एक जन्म वह है, जो आप और परमात्मा के बीच संपर्क से मिलता है। वही असली जन्म है। क्योंकि उसके बाद ही आप जीवन को उपलब्ध होते हैं।
मां-बाप से जो जन्म मिलता है, वह तो मृत्यु में ले जाता है और कहीं नहीं ले जाता। उसको जीवन कहना व्यर्थ है। एक और जीवन है, जो कभी नष्ट नहीं होता। और जब तक उसकी सुगंध, उसकी सुवास, आपको उसका संस्पर्श न हो जाए, तब तक आप जानना कि आप व्यर्थ ही भटक रहे हैं। और जहां हीरे कमाए जा सकते थे, वहां आप कंकड़ इकट्ठे करने में समय को नष्ट कर रहे हैं।
घर जाकर इस प्रयोग को कर लेना। और ऐसा नहीं है कि एक दफे प्रयोग कर लिया, तो काम पूरा हो गया। इसे आप रोज सुबह कर ले सकते हैं। अगर एक तीन महीने आपने इसको नियमित रूप से किया, आप दूसरे आदमी हो जाएंगे, द्विज हो जाएंगे। और आप अनुभव करेंगे कि पहली बार खुले आकाश में, खुली हवाओं में, खुले सूरज में, आपकी यात्रा शुरू हुई। और आप पहली दफा अनुभव करेंगे कि पृथ्वी पर होना धन्यभाग है; और यह जीवन एक सौभाग्य है, अभिशाप नहीं है। और परमात्मा ने इसे एक शिक्षण के लिए दिया है।
जिन मित्रों ने प्रयोग किया है, उनमें से बहुत-से मित्र गहरी झलक लिए हैं। वे इस प्रयोग को घर जारी रखेंगे, तो उनकी गहराई तो बहुत बढ़ जाएगी।
एक बात ध्यान रखें, ध्यान को स्नान जैसा बना लें, रोज का कृत्य। जैसे शरीर को रोज धो लेना पड़ता है, तभी वह ताजा और साफ होता है। ऐसे ही मन को भी रोज धो लें, तभी वह ताजा और साफ होता है। और जिनके मन ताजे और साफ नहीं हैं, वे भगवान का आवास नहीं बन सकते हैं।
उसे हम बुलाते हैं, लेकिन हम तैयार नहीं हैं। उसे हम चाहते हैं कि वह मेहमान बने, लेकिन हमारे भीतर गंदगी और कचरे के सिवाय कुछ भी नहीं है। साधारण अतिथि घर में आता है, तो हम बड़ी तैयारियां और बड़ी सजावट करते हैं। और हम परमात्मा को बुलाते हैं बिना किसी तैयारी के। वहां हमारी कोई सजावट नहीं है। और ध्यान रहे, वह अतिथि आने को तैयार है, लेकिन मेजबान तैयार नहीं है।
थोड़ा इसे तैयार करें। जैसा शरीर को धोते हैं, ऐसा रोज मन को भी धोते रहें। धुलते-धुलते मन दर्पण बन जाता है और उस दर्पण में परमात्मा की छवि उतरनी शुरू हो जाती है।
परमात्मा कोई सिद्धांत नहीं है। दर्शनशास्त्र से उसका कोई संबंध नहीं है। परमात्मा एक अनुभव है। और सारे शास्त्र भी आपके पास हों, तो व्यर्थ हैं, जब तक परमात्मा की अपनी निजी एकाध प्रतीति न हो। और एक छोटी-सी प्रतीति और दुनिया दूसरी हो जाती है। फिर इस दुनिया में कोई दुख नहीं है, और कोई चिंता नहीं है, और कोई मृत्यु नहीं है।
अमृत की तरफ एक इशारा हमने यहां किया है। एक प्रयोग छोटा-सा किया है। जिन्होंने हिम्मत की, वे उसे दोहराएं। जिन्होंने हिम्मत नहीं की, वे भी घर जाकर एकांत में हिम्मत करने की कोशिश करें। अगर आपने ठीक श्रम किया, तो एक बात पक्की है, परमात्मा की तरफ उठाया गया कोई भी कदम व्यर्थ नहीं जाता है। कोई भी कदम व्यर्थ नहीं जाता है। और छोटा-सा भी प्रयास पुरस्कृत होता है।

हमारी बैठक पूरी हुई।

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