YOG/DHYAN/SADHANA
Dhyan Ke Kamal (ध्यान के कमल) 04
Fourth Discourse from the series of 10 discourses - Dhyan Ke Kamal (ध्यान के कमल) by Osho.
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जीवन में दुख भी है और सुख भी, क्योंकि जन्म भी है और मृत्यु भी। लेकिन इस बात पर बहुत कुछ निर्भर करता है कि दोनों में से हम किसको चुन कर जीवन की बुनियाद बनाते हैं।
यदि कोई व्यक्ति मृत्यु को चुन कर जीवन की बुनियाद रखे, तो फिर जन्म भी केवल मृत्यु की शुरुआत मालूम पड़ेगी। और अगर कोई जीवन को ही बुनियाद रखे, तो फिर मृत्यु भी जीवन की परिपूर्णता और जीवन की अंतिम खिलावट मालूम पड़ेगी। कोई व्यक्ति अगर दुख को ही जीवन का आधार चुन ले, तो सुख भी केवल दुख में जाने का उपाय दिखाई पड़ेगा। और अगर कोई व्यक्ति सुख को जीवन का आधार बना ले, तो दुख भी केवल एक सुख से दूसरे सुख में परिवर्तन की कड़ी होगी। यह निर्भर करता है चुनाव पर। जीवन में दोनों हैं। हम क्या चुनते हैं, इससे पूरे जीवन की व्यवस्था बदल जाती है। अशांति भी है जीवन में, शांति भी। हम क्या चुनते हैं, इस पर सब निर्भर करेगा।
ध्यान अशांति को जीवन के आधार से हटाने की विधि है और जीवन के आधार में मौन, शांत चित्त को रखने की व्यवस्था है। लेकिन हम अशांत होने में बहुत निष्णात हैं। और हम कोई मौका नहीं चूकते। अशांति का कोई मौका मिलता हो तो हम चूकते ही नहीं, तत्पर हैं बहुत। प्रतीक्षा में हैं कि कोई कारण मिले और हम अशांत हो जाएं।
आपको याद पड़ता है आपने जीवन में कोई अशांत होने का मौका खाली जाने दिया? वह याद नहीं पड़ेगा। किसी ने गाली दी हो और आप क्रोधित न हुए हों? नहीं; आप क्रोधित होने का कारण खोज ही लेंगे तत्काल। अवसर आप खो नहीं सकते।
लेकिन कुछ अवसर खोना शुरू करें, यदि ध्यान में आगे बढ़ना है तो कुछ अवसर खोना शुरू करें। कोई गाली दे तो उस क्षण गाली पर ध्यान न दें। ध्यान दें इस बात पर--कि क्या मैं इस अवसर को चूक सकता हूं? और जो व्यक्ति अशांति के अवसर चूकता नहीं, अशांत होता ही है नियमित रूप से, वह व्यक्ति शांति के अवसर चूकता चला जाता है। क्योंकि दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकती हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन पर एक मुकदमा है कि उसने अपनी पत्नी को लकड़ी उठा कर मारा। और जज उससे पूछता है कि मुल्ला, यह लकड़ी तुमने क्यों मारी?
तो उसने कहा, दरवाजा खुला था, पत्नी की मेरी तरफ पीठ थी, लकड़ी बिलकुल हाथ के पास थी, मैंने सोचा: आई शुड नॉट मिस दिस ऑपरच्युनिटी। यह अवसर चूकने जैसा नहीं है। पत्नी की पीठ थी, दरवाजा खुला था, लकड़ी बिलकुल हाथ के पास थी। सोचा: आई मस्ट टेक ए चांस। एक मौका मिला, इसका उपयोग कर लो।
अवसर को दो हिस्सों में खयाल ले लें: शांति के अवसर हैं, अशांति के भी अवसर हैं। अगर आप अशांति के अवसर नहीं चूकते, तो शांति के चूकते चले जाएंगे। क्योंकि आपके चित्त की बनावट चुनाव की हो जाती है। आप अशांति को तत्काल चुन लेते हैं।
कोई आदमी अगर क्रोध से आपकी तरफ देखे, तो आप कभी ऐसा नहीं सोचते कि उसका क्रोध झूठा रहा होगा, लेकिन कोई मुस्कुराए तो जरूर सोचते हैं कि बनावट रही होगी, बनावटी मुस्कुराहट होगी। लेकिन क्रोध को आप कभी नहीं सोचते कि बनावटी रहा हो। कोई आदमी आपके प्रति प्रेम प्रकट करे, तो संदेह भी रहता है कि मन में पता नहीं क्या मतलब हो। लेकिन कोई क्रोध प्रकट करे, तो कभी संदेह नहीं उठता कि क्या मतलब हो। मतलब बिलकुल साफ है। यह हमारे चुनाव की वृत्ति है।
कोई अगर किसी के संबंध में आपसे कहे कि बहुत भला आदमी है, तो आप समझते हैं कि यह हो नहीं सकता। लेकिन कोई कहे फलां आदमी बहुत बुरा है, तो पक्का निश्चय हो जाता है कि बुरा होना ही चाहिए। अगर कोई आदमी आपसे कहे कि फलां आदमी भला है, तो पहले आप इस आदमी के बाबत सोचते हैं कि यह कहने वाला खुद तो इस हालत में है कि यह क्या भले को पहचानेगा! लेकिन अगर वही आदमी आपसे आकर कहे कि फलां आदमी बुरा है, तो फिर आप कभी नहीं पूछते कि यह आदमी खुद तो बुरा नहीं है! हमारे चुनाव हैं। बुरे को, गलत को हम बड़ी शीघ्रता से चुनते हैं, सेंसिटिव हैं, एकदम पकड़ लेते हैं।
इसको बदलें। अगर ध्यान में गहरे जाना है तो चौबीस घंटे इसका स्मरण रखें कि अशांत होने के मौके चूकें, शांत होने के मौके पकड़ें। जब भी मौका मिल जाए शांत होने का क्षण भर को तो शांत हों। और जब भी मौका मिले अशांत होने का तो कृपा करें अपने पर, चूक जाएं। थोड़े ही दिन में आपके चुनाव का रुख बदल जाएगा। और तब आप बहुत हैरान होंगे कि आपका जो दुख था आज तक का, वह आपकी ही च्वाइस थी, आपका ही चुनाव था।
यह जगत किसी को दुख देने को उत्सुक नहीं है। इस जगत ने किसी के लिए नरक और किसी के लिए स्वर्ग बना कर नहीं रखे हैं। प्रकृति का कोई पक्षपात नहीं है। प्रकृति बहुत अनप्रिज्युडिस्ड है। वह कोई फिक्र नहीं करती कि आप कौन हैं। लेकिन आप ही नरक को चुनते हैं। और बड़े मजे की बात है कि नरक पर लोग बड़ा भरोसा करते हैं। स्वर्ग पर भरोसा करने वाला आदमी मिलना बहुत मुश्किल है।
ऐसे भी लोग हैं जो ईश्वर पर भरोसा नहीं करते, लेकिन शैतान पर भरोसा करते हैं। ऐसे भी लोग हैं, जिनको शक हो सकता है कि स्वर्ग है या नहीं, लेकिन नरक में किसी को शक नहीं होता।
मुल्ला नसरुद्दीन की लड़की अपने बाप से पूछती है कि मैं जिस युवक को प्रेम करती हूं, उससे विवाह करूं या न करूं? क्योंकि वह धार्मिक नहीं है और उसे स्वर्ग और नरक में बिलकुल ही भरोसा नहीं है।
मुल्ला ने कहा, स्वर्ग के बाबत तो मैं कुछ नहीं कह सकता, लेकिन तू शादी कर और शादी करके तू सिद्ध कर दे कि नरक है। तेरी मां ने मेरे लिए सिद्ध कर दिया, तू उसके लिए सिद्ध कर दे। स्वर्ग के बाबत मैं कुछ नहीं कह सकता। अपना कोई अनुभव नहीं, विश्वास भी नहीं। लेकिन एक मामले में तू उसे निश्चय करवा सकती है कि नरक है।
स्वर्ग भरोसे में नहीं आता; बिलीवेबल नहीं है, विश्वास योग्य नहीं है। नरक बिलकुल भरोसे में आता है। लेकिन यह भरोसा हमारा खबर देता है हमारे संबंध में, नरक के संबंध में नहीं। यह बताता है कि हम नरक को मानने को उत्सुक और तैयार हैं। स्वर्ग को मानने की हमारी तैयारी नहीं, क्योंकि हमने जीवन में स्वर्ग कभी चुना ही नहीं।
तो ध्यान की यात्रा पर निकलने वाले लोगों को यह स्मरण रहे कि ध्यान अकेला काफी नहीं है, आपके चित्त के चुनाव के ढंग बदलने चाहिए।
शुभ को देखने की कोशिश करें, सुंदर को देखने की कोशिश करें। असुंदर को उपेक्षा दें, कुरूप को ध्यान मत दें। अंधेरे को चुनने की जरूरत क्या है? आपके लायक प्रकाश जगत में काफी है। अंधेरा है जरूर, लेकिन आपको खड़े होने की कोई जरूरत नहीं है अंधेरे में। आपके खड़े होने के लिए प्रकाश काफी है। और कोई व्यक्ति चाहे तो पूरे जीवन को प्रकाश में बिता सकता है।
लेकिन हमारा चुनाव ऐसा है कि प्रकाश और अंधेरा हो, तो हम अंधेरे में जाकर खड़े हो जाएंगे। और अंधेरे में खड़े होकर हम चिल्लाते रहेंगे कि अंधेरा ही अंधेरा है! दुख ही दुख है! यहां कोई सुख की किरण भी नहीं है!
ध्यान रहे, आनंद को उपलब्ध होना हो तो आपके चुनाव का ढंग बिलकुल ही बदल जाना चाहिए। और आपके हाथ में है। सुबह उठते हैं, तब से...
एक झेन फकीर हुआ, बोकोजू। उसके पास जापान का सम्राट मिलने आया था। जापान के सम्राट ने उससे पूछा कि क्या नरक है?
बोकोजू ने नरक के संबंध में तो कोई उत्तर न दिया, नीचे से ऊपर तक सम्राट को देखा। वह सजा-धजा था एक सैनिक की वेशभूषा में। बोकोजू ने कहा कि जब भी मैं किसी को सैनिक की वेशभूषा में देखता हूं तो मुझे खयाल आता है कि भीतर एक डरपोक आदमी छिपा है।
सम्राट का रुख एकदम बदल गया। आया था श्रद्धा से भरा हुआ, एकदम अश्रद्धा हो गई। और बोकोजू ने कहा कि तुम्हारी शकल सम्राट जैसी बिलकुल नहीं लगती। शकल तो तुम्हारी कुछ ऐसी लगती है कि जैसे कोई नाटक में किसी को सम्राट बना दिया हो। तो उसका हाथ तलवार की मूठ पर चला गया सम्राट का। और बोकोजू ने कहा कि मुझे डराने की कोशिश मत करो, क्योंकि मैं अगर जोर से चिल्ला भी दूं तो तुम भाग खड़े होओगे।
यह तो हद्द हो गई! वह आया था कुछ पूछने और यह आदमी क्या बातें कर रहा है! उसने तलवार निकाल कर बोकोजू की गर्दन पर रख दी।
बोकोजू ने कहा कि देखो, तुम नरक का दरवाजा खोल रहे हो। नरक है, और यह तुम दरवाजा खोल रहे हो। ये मैंने सिर्फ तीन बातें तुमसे इसलिए कहीं ताकि तुम्हें दरवाजे पर ही पहुंचा कर बता दूं कि यह रहा नरक। अब बस जरा सा ही खोलो कि गए अंदर। अब तुम्हारी मर्जी! चाहो तो लौट जाओ, चाहो तो प्रवेश कर जाओ।
आपका ही चुनाव आपको नरक के दरवाजे पर रोज ले आता है। चुनाव महत्वपूर्ण है, सुख-दुख उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं। सुख-दुख साधारण घटनाएं हैं। चुनाव आपका भीतर महत्वपूर्ण है। तो ध्यान के लिए इस सूत्र को स्मरण रखें।
अब ध्यान के संबंध में मैं दो-तीन बातें और आपसे कह दूं और फिर हम ध्यान के प्रयोग में जाएं। शायद कुछ नये लोग आ गए हों।
पंद्रह मिनट कीर्तन चलेगा। उस कीर्तन में जितने भाव-मुग्ध हो सकें, उतना ही गहरा जा सकेंगे। उस कीर्तन में जितने पागल हो सकें, उतनी ही गति है। उस कीर्तन में जितने बह जाएं, उतनी ही सरलता हो जाएगी। जो लोग देखने को आ गए हों, वे कुर्सियों पर बैठ जाएंगे, वे यहां अंदर नहीं होंगे। कोई भी व्यक्ति जो देखने आ गया हो, वह कुर्सियों पर चला जाएगा। जो करने आया हो, वह कुर्सियां छोड़ कर कंपाउंड में आ जाएगा। जो करने आया हो, वह कुर्सी पर न बैठा रहे। क्योंकि मैं देखता हूं, कुछ लोग कुर्सी पर बैठ कर करते हैं। वह कुर्सी काफी बाधा बन जाती है। बाहर की कुर्सियां तो बाधा बनती ही हैं, भीतर भी कुर्सियां हैं, वे भी बाधा बनती हैं।
आपमें भी कई लोग जमीन पर बैठे हैं, लेकिन अपनी कुर्सी छोड़ कर नहीं बैठ पाते। वे वहां भी बैठे हैं, लेकिन उनकी कुर्सी पीछे पकड़ी हुई है। वे जानते हैं कि मैं मजिस्ट्रेट हूं, मैं कैसे नाच सकता हूं?
अब नाच का मजिस्ट्रेट से क्या लेना-देना है! मजिस्ट्रेट नाच सकता है, नाच का कोई विरोध नहीं है। नाचने वाला मजिस्ट्रेट हो सकता है, कोई कंट्राडिक्शन नहीं है इसमें कहीं कोई।
कि मेरे पास दस लाख रुपये हैं, तो मैं कैसे नाच सकता हूं?
दस लाख रुपये हैं और नहीं नाच सकते, तो फिर कब नाचेंगे? आदमी रुपये कमाता इसलिए है कि किसी दिन नाच सके। लेकिन गधेपन का कोई अंत नहीं है। रुपये इकट्ठे हो जाते हैं, नाचना भूल जाता है। तो वह कहता है, मेरे पास इतने रुपये हैं, मैं कैसे नाचूं?
रुपये किसलिए इकट्ठे किए? इसीलिए कि किसी दिन वह क्षण आ जाएगा कि कोई रोक-टोक नहीं रहेगी, मन मुक्त होगा, नाच सकेंगे। अब नाचने का वक्त आ गया तो रुपये छाती पर रख कर बैठे हैं कि वह वजन ज्यादा है, नाचें कैसे?
तो जो ऐसे यहां बिना कुर्सी के भी कुर्सी पर बैठे हों, वे कुर्सियों पर चले जाएं। कुर्सियों पर कोई भूल से बैठ गए हों और नाच सकते हों, वे नीचे आ जाएं। देखने वाले सब कुर्सियों पर होंगे, नीचे कोई नहीं होगा। एक भी आदमी बीच में बाधा बन जाता है। उससे ताल टूट जाता है। जैसे ही पंद्रह मिनट में आप गहरे मौन में प्रवेश करते हैं और कीर्तन में, ये इतने लोग अलग-अलग नहीं रह जाते, एक धारा हो जाती है, एक रिदम, एक गति हो जाती है। उस गति में सब संयुक्त हो जाते हैं। उसमें एक भी व्यक्ति बेईमानी से बीच में खड़ा रहे, तो वह रिदम को तोड़ता है, गति को तोड़ता है।
तो अपने साथ आप कुछ भी करें, कृपा कर दूसरों को नुकसान न पहुंचे, इसका तो ध्यान रखना ही चाहिए। तो वहां से हट जाएं। और दूर-दूर फैल कर खड़े होना है। पास-पास खड़े होना धोखा देना है। वह नाच से बचने की तरकीब है। आप दूर-दूर फैल जाएं, ताकि मुक्त मन से नाच सकें।
दूसरी बात, पंद्रह मिनट तक कीर्तन, फिर पंद्रह मिनट तक मुक्त-भाव। कीर्तन बंद हो जाएगा, धुन चलती रहेगी। फिर धुन के साथ बढ़ते चले जाएं।
तीस मिनट के बाद मैं आपको माथे को रगड़ने को कहूंगा।
कुछ प्रश्न उस संबंध में आए हैं। एक तो यह कि अगर दाएं हाथ से रगड़ने में तकलीफ हो?
अगर ऐसी तकलीफ हो तो बाएं से रगड़ सकते हैं। ऐसी कोई अड़चन नहीं है। बाएं से रगड़ सकते हैं, अगर दाएं हाथ से किसी को रगड़ने में तकलीफ होती हो तो बाएं से रगड़ सकते हैं। दूसरी बात, अगर किसी को ऐसा लगता हो कि बहुत जोर से रगड़ने से अड़चन होती है, तो इतने जोर से नहीं रगड़ना है कि घाव बन जाए या चमड़ी छिल जाए, इतने जोर से नहीं रगड़ना है। आप अपना-अपना हिसाब कर लें। क्योंकि सब की अपनी-अपनी चमड़ी की मोटाई है। आप अपना हिसाब कर लें कि कितना रगड़ना है। फिर रगड़ने की भी अपनी-अपनी ताकत है। वह आप अपना तय कर लें। चमड़ी न छिल जाए, इतना ध्यान रखें।
और किसी मित्र ने पूछा है कि आधा मिनट में ही प्रक्रिया शुरू हो जाती है, तो क्या मिनट तक जारी रखना है?
प्रक्रिया शुरू हो जाए, जब आपको लगे कि भीतर का द्वार खुलना शुरू हुआ, तो छोड़ सकते हैं। कोई एक मिनट जरूरी नहीं है। एक मिनट सिर्फ इसलिए कि सबकी प्रक्रिया शुरू हो जाए। किसी को अगर मिनट में भी ऐसा लगे कि अभी कुछ अधूरा है, तो वह दो मिनट तक जारी रख सकता है। एक मिनट तो हम सबके लिए उपयोग कर रहे हैं। किसी को ऐसा लगे कि कुछ हो रहा है और मिनट समाप्त हो गया, तो वह और एक मिनट जारी रख सकता है, उसमें कोई बाधा नहीं है। वह आप पर निर्भर है।
फिर गहरे मौन में तीसरा चरण हम बिताएंगे। उस क्षण जो भी अनुभव हों, उन्हें बड़े आनंद से देखते रहें, साक्षी बने रहें।
अंत में फिर एक मिनट के लिए माथे को रगड़ना है। फिर दोनों हाथ आकाश की तरफ उठा कर आंख खोल देनी है। आकाश आपकी आंख में झांक सके, आप आकाश में झांक सकें, तो एक गहरा मिलन, एक कम्यूनियन घटित होता है। और फिर परमात्मा को धन्यवाद देना है। जब आप हाथ उठा कर आकाश में झांकेंगे, उस वक्त जो भी हृदय में तरंग आनंद की आ जाए, उसे खुले मन से प्रकट करना है, पूरे आनंद से प्रकट करना है। किसी का उस वक्त हंसने का मन हो, आनंद के आंसू बह जाएं, डोलने का मन हो, नाचने का मन हो, उस क्षण जो भी हो, एक दो-तीन मिनट के लिए पूरे मुक्त-भाव से अपनी अभिव्यक्ति कर लेनी है। फिर धन्यवाद देकर...
जो लोग भी देखने को हों वे हट जाएं और जो लोग करने को हों वे दूर-दूर फैल जाएं।
(पहले चरण में पंद्रह मिनट संगीत की धुन के साथ कीर्तन चलता रहता है।)
गोविंद बोलो, हरि गोपाल बोलो
गोविंद बोलो, हरि गोपाल बोलो
गोविंद बोलो, हरि गोपाल बोलो...
राधा रमण हरि गोपाल बोलो
राधा रमण हरि गोपाल बोलो
राधा रमण हरि गोपाल बोलो...
(दूसरे चरण में पंद्रह मिनट सिर्फ धुन चलती रहती है और भावों की तीव्र अभिव्यक्ति में रोना, हंसना, नाचना, चिल्लाना आदि चलता रहता है। तीस मिनट के बाद तीसरे चरण में ओशो पुनः सुझाव देना प्रारंभ करते हैं।)
शांत हो जाएं, आवाज छोड़ दें। आंख बंद कर लें। लेट जाएं, बैठ जाएं या खड़े रहें, जैसा भी मन हो। आंख बंद कर लें। आवाज छोड़ दें, नाचना छोड़ दें। शक्ति जग गई है, अब उसे भीतर काम करने दें। चुप हो जाएं। आंख बंद कर लें। बिलकुल चुप हो जाएं। आंख बंद कर लें। दायां हाथ माथे पर रख लें, दोनों आंखों के बीच और दोनों तरफ, ऊपर-नीचे रगड़ें...भीतर कोई द्वार खुलना शुरू हो जाएगा...रगड़ते ही भीतर बहुत प्रकाश फैलना शुरू हो जाएगा...रब योर राइट हैंड पाम ऑन दि फोरहेड...
हाथ रगड़ते ही भीतर अनेक अनुभव उठने शुरू हो जाएंगे...रगड़ें, हाथ रगड़ते ही भीतर बहुत कुछ होना शुरू हो जाएगा...रगड़ें...
रब योर राइट हैंड पाम ऑन दि फोरहेड--साइडवेज, अप एंड डाउन...मेनी एक्सपीरिएंसेज विल बिगिन टु हैपन...रब इट...
बस अब हाथ छोड़ दें और मुर्दे की भांति हो जाएं...हाथ छोड़ दें...नाउ स्टॉप रबिंग...मुर्दे की भांति हो जाएं...परमात्मा के द्वार पर पड़े हैं सब समर्पण कर...
भीतर प्रकाश ही प्रकाश फैल जाएगा, अनंत प्रकाश...भीतर प्रकाश ही प्रकाश फैल जाएगा, ऐसा प्रकाश जो कभी नहीं जाना...भीतर प्रकाश ही प्रकाश का सागर लहराने लगेगा...प्रकाश ही प्रकाश, प्रकाश ही प्रकाश...
प्रकाश ही प्रकाश के सागर में खो गए...तन-मन का रोआं-रोआं प्रकाश से भर जाएगा...प्रकाश ही शेष रह जाएगा...लाइट, मोर लाइट, इनफिनिट लाइट, ओनली लाइट रिमेन्स...प्रकाश ही प्रकाश फैल गया, अनंत प्रकाश फैल गया...
अनुभव करें और इस प्रकाश के साथ एक हो जाएं...अनुभव करें और इस प्रकाश के साथ एक हो जाएं...बी वन विद दिस लाइट, बी वन विद दिस लाइट, फील दि लाइट एंड बी वन विद दिस...
प्रकाश ही प्रकाश...खो गए उस प्रकाश में...कुछ शेष नहीं बचा, सिर्फ प्रकाश ही प्रकाश...प्रकाश के पीछे-पीछे ही आनंद की छाया आने लगती है, आनंद की धारा आने लगती है...प्रकाश के साथ ही साथ आ जाता है आनंद...आनंद से भर जाएं, आनंद से भर जाएं, आनंद के साथ एक हो जाएं...आनंद से भर जाएं, आनंद के साथ एक हो जाएं...
ब्लिस फॉलोज लाइट एज ए शैडो...नाउ बी ब्लिसफुल, बी फिल्ड विद इट, बी वन विद इट...फील दि ब्लिस...आनंद को अनुभव करें, आनंद से भर जाएं, आनंद से एक हो जाएं...समस्त तन-प्राण आनंद से आंदोलित हो उठा है...समस्त अस्तित्व आनंद से आंदोलित हो उठा है...आनंद से भर जाएं, एक हो जाएं...
फील दि ब्लिस...दि होल एक्झिस्टेंस हैज बिकम ब्लिस...फील इट, बी फिल्ड विद इट, बी वन विद इट...
और आनंद के पीछे-पीछे ही परमात्मा की उपस्थिति प्रतीत होने लगती है...वही मौजूद है चारों ओर, वही घेरे हुए है, बाहर-भीतर वही है...आती श्वास में वही, जाती श्वास में वही...अनुभव करें, उसकी उपस्थिति से भर जाएं...
दि एक्सपीरिएंस ऑफ दि ब्लिस इज़ फालोड बाइ डिवाइन पे्रजेंस...नाउ फील दि डिवाइन आल अराउंड--इनसाइड, आउटसाइड...नाउ फील दि प्रेजेंस, बी फिल्ड विद इट, बी वन विद इट...प्रभु की उपस्थिति अनुभव करें, वही चारों ओर मौजूद है, वही घेरे हुए है...वही है जन्म, वही है मृत्यु...केवल प्रभु ही है...अनुभव करें, अनुभव करें, अनुभव करें, अनुभव करें...
इस परम अनुभव के क्षण में, एक झटके से शरीर के बाहर हो जाएं। जैसे कोई अपने वस्त्रों को निकाल कर बाहर हो जाए। जैसे कोई अपने घर से निकले और बाहर हो जाए। एक छलांग लें, एक झटके से शरीर के बाहर हो जाएं। इस समय बाहर हो सकते हैं। और अपने शरीर को लौट कर देखें--वह पीछे मुर्दे की भांति पड़ा है।
नाउ टेक ए जंप, दिस इज़ दि मोमेंट एंड दि जंप कैन बी टेकेन, बी आउट ऑफ योर बॉडी। जस्ट टेक ए जंप एंड बी आउट ऑफ योर बॉडी। देन लुक बैक--दि बॉडी इज़ लाइंग डेड। एंड वंस यू हैव नोन दैट दि बॉडी इज़ सेपरेट फ्रॉम यू, यू विल नेवर फॉरगेट। जान लें एक बार कि शरीर अलग है, शरीर अलग है मुझसे, और फिर यह कभी नहीं भूला जाता है। एक झटके में, हिम्मत करें, शरीर को छोड़ कर बाहर खड़े हो जाएं। ये क्षण हैं, जरा सा साहस, और बाहर हो सकते हैं। और अपने शरीर को देखें--बैठा हुआ, पड़ा हुआ, खड़ा हुआ, मुर्दे की भांति--और आप अलग हो गए हैं।
शरीर से स्वयं को अलग जान लेना ही ज्ञान है...शरीर से स्वयं को अलग जान लेना ही परमात्मा से स्वयं को एक जान लेना है...
टु नो दैट दि बॉडी इज़ सेपरेट इज़ दि सुप्रीम नालेज...एंड टु नो दैट दि बॉडी इज़ सेपरेट, इज़ टु नो दैट यू आर वन विद दि डिवाइन...
एक छलांग, झटके से बाहर हो जाएं...सोचें नहीं, झटके से बाहर हो जाएं...और लौट कर देखें--शरीर मुर्दे की भांति पड़ा हुआ है...
चारों ओर परमात्मा मौजूद है और हम उसके सागर में खो गए, जैसे बूंद सागर में खो जाए...जैसे महासूर्य के प्रकाश में कोई छोटा सा दीया जलाए और उसकी ज्योति सूर्य के प्रकाश में खो जाए, ऐसे ही हम उसकी मौजूदगी में खो गए...जैसे हमारी श्वास निकलती है शरीर के बाहर और अनंत आकाश में खो जाती है, ऐसे ही हम निकले स्वयं के बाहर और अनंत परमात्मा में खो गए...प्रकाश ही प्रकाश है, आनंद ही आनंद है और चारों ओर परमात्मा मौजूद है...
अब दोनों हाथ ऊपर उठा लें, आंखें ऊपर उठा लें, आंखें खोलें, आकाश को देखें और आकाश को आपकी आंखों में झांकने दें...नाउ रेज़ योर बोथ हैंड्स टुवर्ड्स दि स्काई, ओपन योर आइज, लुक इनटु दि स्काई एंड लेट दि स्काई लुक इनटु यू...और जो भी आनंद की लहर भीतर आती हो उसे प्रकट करें...जो भी आनंद का भाव उठता हो उसे समग्र रूप से प्रकट करें...
नाउ एक्सप्रेस योर ब्लिस, नाउ एक्सप्रेस योर एक्सटैसी...हंसना हो, रोना हो, चिल्लाना हो आनंद में, नाचना हो, जो भी भाव आ जाए उसे प्रकट कर दें...रोकें नहीं, जो भी भाव हो उसे फैल जाने दें...एक्सप्रेस योर ब्लिस एनी वे इट हैपन्स टु यू...हंसें, नाचें, चिल्लाएं, रोएं, जो भी भाव आता हो उसे पूरी शक्ति दे दें और प्रकट करें...
अब दोनों हाथ जोड़ लें, उसे धन्यवाद दे दें। आदमी अकेले से तो कुछ न होगा, प्रभु की अनुकंपा चाहिए, उसका सहारा चाहिए। दोनों हाथ जोड़ लें, चरणों में सिर झुका दें उसके। नाउ पुट योर बोथ हैंड्स इन नमस्कार पोज एंड पुट योर हेड इनटु हिज़ फीट।
और हृदय के रोएं-रोएं को कहने दें, धड़कन-धड़कन को: प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है। दाइ ग्रेस इज़ इनफिनिट, दाइ ग्रेस इज़ इनफिनिट, दाइ ग्रेस इज़ इनफिनिट। प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है।
दो-चार गहरी श्वास ले लें और ध्यान से वापस लौट आएं। हमारी सुबह की बैठक पूरी हो गई। दो-चार गहरी श्वास ले लें और ध्यान से वापस लौट आएं। हमारी सुबह की बैठक पूरी हो गई।
यदि कोई व्यक्ति मृत्यु को चुन कर जीवन की बुनियाद रखे, तो फिर जन्म भी केवल मृत्यु की शुरुआत मालूम पड़ेगी। और अगर कोई जीवन को ही बुनियाद रखे, तो फिर मृत्यु भी जीवन की परिपूर्णता और जीवन की अंतिम खिलावट मालूम पड़ेगी। कोई व्यक्ति अगर दुख को ही जीवन का आधार चुन ले, तो सुख भी केवल दुख में जाने का उपाय दिखाई पड़ेगा। और अगर कोई व्यक्ति सुख को जीवन का आधार बना ले, तो दुख भी केवल एक सुख से दूसरे सुख में परिवर्तन की कड़ी होगी। यह निर्भर करता है चुनाव पर। जीवन में दोनों हैं। हम क्या चुनते हैं, इससे पूरे जीवन की व्यवस्था बदल जाती है। अशांति भी है जीवन में, शांति भी। हम क्या चुनते हैं, इस पर सब निर्भर करेगा।
ध्यान अशांति को जीवन के आधार से हटाने की विधि है और जीवन के आधार में मौन, शांत चित्त को रखने की व्यवस्था है। लेकिन हम अशांत होने में बहुत निष्णात हैं। और हम कोई मौका नहीं चूकते। अशांति का कोई मौका मिलता हो तो हम चूकते ही नहीं, तत्पर हैं बहुत। प्रतीक्षा में हैं कि कोई कारण मिले और हम अशांत हो जाएं।
आपको याद पड़ता है आपने जीवन में कोई अशांत होने का मौका खाली जाने दिया? वह याद नहीं पड़ेगा। किसी ने गाली दी हो और आप क्रोधित न हुए हों? नहीं; आप क्रोधित होने का कारण खोज ही लेंगे तत्काल। अवसर आप खो नहीं सकते।
लेकिन कुछ अवसर खोना शुरू करें, यदि ध्यान में आगे बढ़ना है तो कुछ अवसर खोना शुरू करें। कोई गाली दे तो उस क्षण गाली पर ध्यान न दें। ध्यान दें इस बात पर--कि क्या मैं इस अवसर को चूक सकता हूं? और जो व्यक्ति अशांति के अवसर चूकता नहीं, अशांत होता ही है नियमित रूप से, वह व्यक्ति शांति के अवसर चूकता चला जाता है। क्योंकि दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकती हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन पर एक मुकदमा है कि उसने अपनी पत्नी को लकड़ी उठा कर मारा। और जज उससे पूछता है कि मुल्ला, यह लकड़ी तुमने क्यों मारी?
तो उसने कहा, दरवाजा खुला था, पत्नी की मेरी तरफ पीठ थी, लकड़ी बिलकुल हाथ के पास थी, मैंने सोचा: आई शुड नॉट मिस दिस ऑपरच्युनिटी। यह अवसर चूकने जैसा नहीं है। पत्नी की पीठ थी, दरवाजा खुला था, लकड़ी बिलकुल हाथ के पास थी। सोचा: आई मस्ट टेक ए चांस। एक मौका मिला, इसका उपयोग कर लो।
अवसर को दो हिस्सों में खयाल ले लें: शांति के अवसर हैं, अशांति के भी अवसर हैं। अगर आप अशांति के अवसर नहीं चूकते, तो शांति के चूकते चले जाएंगे। क्योंकि आपके चित्त की बनावट चुनाव की हो जाती है। आप अशांति को तत्काल चुन लेते हैं।
कोई आदमी अगर क्रोध से आपकी तरफ देखे, तो आप कभी ऐसा नहीं सोचते कि उसका क्रोध झूठा रहा होगा, लेकिन कोई मुस्कुराए तो जरूर सोचते हैं कि बनावट रही होगी, बनावटी मुस्कुराहट होगी। लेकिन क्रोध को आप कभी नहीं सोचते कि बनावटी रहा हो। कोई आदमी आपके प्रति प्रेम प्रकट करे, तो संदेह भी रहता है कि मन में पता नहीं क्या मतलब हो। लेकिन कोई क्रोध प्रकट करे, तो कभी संदेह नहीं उठता कि क्या मतलब हो। मतलब बिलकुल साफ है। यह हमारे चुनाव की वृत्ति है।
कोई अगर किसी के संबंध में आपसे कहे कि बहुत भला आदमी है, तो आप समझते हैं कि यह हो नहीं सकता। लेकिन कोई कहे फलां आदमी बहुत बुरा है, तो पक्का निश्चय हो जाता है कि बुरा होना ही चाहिए। अगर कोई आदमी आपसे कहे कि फलां आदमी भला है, तो पहले आप इस आदमी के बाबत सोचते हैं कि यह कहने वाला खुद तो इस हालत में है कि यह क्या भले को पहचानेगा! लेकिन अगर वही आदमी आपसे आकर कहे कि फलां आदमी बुरा है, तो फिर आप कभी नहीं पूछते कि यह आदमी खुद तो बुरा नहीं है! हमारे चुनाव हैं। बुरे को, गलत को हम बड़ी शीघ्रता से चुनते हैं, सेंसिटिव हैं, एकदम पकड़ लेते हैं।
इसको बदलें। अगर ध्यान में गहरे जाना है तो चौबीस घंटे इसका स्मरण रखें कि अशांत होने के मौके चूकें, शांत होने के मौके पकड़ें। जब भी मौका मिल जाए शांत होने का क्षण भर को तो शांत हों। और जब भी मौका मिले अशांत होने का तो कृपा करें अपने पर, चूक जाएं। थोड़े ही दिन में आपके चुनाव का रुख बदल जाएगा। और तब आप बहुत हैरान होंगे कि आपका जो दुख था आज तक का, वह आपकी ही च्वाइस थी, आपका ही चुनाव था।
यह जगत किसी को दुख देने को उत्सुक नहीं है। इस जगत ने किसी के लिए नरक और किसी के लिए स्वर्ग बना कर नहीं रखे हैं। प्रकृति का कोई पक्षपात नहीं है। प्रकृति बहुत अनप्रिज्युडिस्ड है। वह कोई फिक्र नहीं करती कि आप कौन हैं। लेकिन आप ही नरक को चुनते हैं। और बड़े मजे की बात है कि नरक पर लोग बड़ा भरोसा करते हैं। स्वर्ग पर भरोसा करने वाला आदमी मिलना बहुत मुश्किल है।
ऐसे भी लोग हैं जो ईश्वर पर भरोसा नहीं करते, लेकिन शैतान पर भरोसा करते हैं। ऐसे भी लोग हैं, जिनको शक हो सकता है कि स्वर्ग है या नहीं, लेकिन नरक में किसी को शक नहीं होता।
मुल्ला नसरुद्दीन की लड़की अपने बाप से पूछती है कि मैं जिस युवक को प्रेम करती हूं, उससे विवाह करूं या न करूं? क्योंकि वह धार्मिक नहीं है और उसे स्वर्ग और नरक में बिलकुल ही भरोसा नहीं है।
मुल्ला ने कहा, स्वर्ग के बाबत तो मैं कुछ नहीं कह सकता, लेकिन तू शादी कर और शादी करके तू सिद्ध कर दे कि नरक है। तेरी मां ने मेरे लिए सिद्ध कर दिया, तू उसके लिए सिद्ध कर दे। स्वर्ग के बाबत मैं कुछ नहीं कह सकता। अपना कोई अनुभव नहीं, विश्वास भी नहीं। लेकिन एक मामले में तू उसे निश्चय करवा सकती है कि नरक है।
स्वर्ग भरोसे में नहीं आता; बिलीवेबल नहीं है, विश्वास योग्य नहीं है। नरक बिलकुल भरोसे में आता है। लेकिन यह भरोसा हमारा खबर देता है हमारे संबंध में, नरक के संबंध में नहीं। यह बताता है कि हम नरक को मानने को उत्सुक और तैयार हैं। स्वर्ग को मानने की हमारी तैयारी नहीं, क्योंकि हमने जीवन में स्वर्ग कभी चुना ही नहीं।
तो ध्यान की यात्रा पर निकलने वाले लोगों को यह स्मरण रहे कि ध्यान अकेला काफी नहीं है, आपके चित्त के चुनाव के ढंग बदलने चाहिए।
शुभ को देखने की कोशिश करें, सुंदर को देखने की कोशिश करें। असुंदर को उपेक्षा दें, कुरूप को ध्यान मत दें। अंधेरे को चुनने की जरूरत क्या है? आपके लायक प्रकाश जगत में काफी है। अंधेरा है जरूर, लेकिन आपको खड़े होने की कोई जरूरत नहीं है अंधेरे में। आपके खड़े होने के लिए प्रकाश काफी है। और कोई व्यक्ति चाहे तो पूरे जीवन को प्रकाश में बिता सकता है।
लेकिन हमारा चुनाव ऐसा है कि प्रकाश और अंधेरा हो, तो हम अंधेरे में जाकर खड़े हो जाएंगे। और अंधेरे में खड़े होकर हम चिल्लाते रहेंगे कि अंधेरा ही अंधेरा है! दुख ही दुख है! यहां कोई सुख की किरण भी नहीं है!
ध्यान रहे, आनंद को उपलब्ध होना हो तो आपके चुनाव का ढंग बिलकुल ही बदल जाना चाहिए। और आपके हाथ में है। सुबह उठते हैं, तब से...
एक झेन फकीर हुआ, बोकोजू। उसके पास जापान का सम्राट मिलने आया था। जापान के सम्राट ने उससे पूछा कि क्या नरक है?
बोकोजू ने नरक के संबंध में तो कोई उत्तर न दिया, नीचे से ऊपर तक सम्राट को देखा। वह सजा-धजा था एक सैनिक की वेशभूषा में। बोकोजू ने कहा कि जब भी मैं किसी को सैनिक की वेशभूषा में देखता हूं तो मुझे खयाल आता है कि भीतर एक डरपोक आदमी छिपा है।
सम्राट का रुख एकदम बदल गया। आया था श्रद्धा से भरा हुआ, एकदम अश्रद्धा हो गई। और बोकोजू ने कहा कि तुम्हारी शकल सम्राट जैसी बिलकुल नहीं लगती। शकल तो तुम्हारी कुछ ऐसी लगती है कि जैसे कोई नाटक में किसी को सम्राट बना दिया हो। तो उसका हाथ तलवार की मूठ पर चला गया सम्राट का। और बोकोजू ने कहा कि मुझे डराने की कोशिश मत करो, क्योंकि मैं अगर जोर से चिल्ला भी दूं तो तुम भाग खड़े होओगे।
यह तो हद्द हो गई! वह आया था कुछ पूछने और यह आदमी क्या बातें कर रहा है! उसने तलवार निकाल कर बोकोजू की गर्दन पर रख दी।
बोकोजू ने कहा कि देखो, तुम नरक का दरवाजा खोल रहे हो। नरक है, और यह तुम दरवाजा खोल रहे हो। ये मैंने सिर्फ तीन बातें तुमसे इसलिए कहीं ताकि तुम्हें दरवाजे पर ही पहुंचा कर बता दूं कि यह रहा नरक। अब बस जरा सा ही खोलो कि गए अंदर। अब तुम्हारी मर्जी! चाहो तो लौट जाओ, चाहो तो प्रवेश कर जाओ।
आपका ही चुनाव आपको नरक के दरवाजे पर रोज ले आता है। चुनाव महत्वपूर्ण है, सुख-दुख उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं। सुख-दुख साधारण घटनाएं हैं। चुनाव आपका भीतर महत्वपूर्ण है। तो ध्यान के लिए इस सूत्र को स्मरण रखें।
अब ध्यान के संबंध में मैं दो-तीन बातें और आपसे कह दूं और फिर हम ध्यान के प्रयोग में जाएं। शायद कुछ नये लोग आ गए हों।
पंद्रह मिनट कीर्तन चलेगा। उस कीर्तन में जितने भाव-मुग्ध हो सकें, उतना ही गहरा जा सकेंगे। उस कीर्तन में जितने पागल हो सकें, उतनी ही गति है। उस कीर्तन में जितने बह जाएं, उतनी ही सरलता हो जाएगी। जो लोग देखने को आ गए हों, वे कुर्सियों पर बैठ जाएंगे, वे यहां अंदर नहीं होंगे। कोई भी व्यक्ति जो देखने आ गया हो, वह कुर्सियों पर चला जाएगा। जो करने आया हो, वह कुर्सियां छोड़ कर कंपाउंड में आ जाएगा। जो करने आया हो, वह कुर्सी पर न बैठा रहे। क्योंकि मैं देखता हूं, कुछ लोग कुर्सी पर बैठ कर करते हैं। वह कुर्सी काफी बाधा बन जाती है। बाहर की कुर्सियां तो बाधा बनती ही हैं, भीतर भी कुर्सियां हैं, वे भी बाधा बनती हैं।
आपमें भी कई लोग जमीन पर बैठे हैं, लेकिन अपनी कुर्सी छोड़ कर नहीं बैठ पाते। वे वहां भी बैठे हैं, लेकिन उनकी कुर्सी पीछे पकड़ी हुई है। वे जानते हैं कि मैं मजिस्ट्रेट हूं, मैं कैसे नाच सकता हूं?
अब नाच का मजिस्ट्रेट से क्या लेना-देना है! मजिस्ट्रेट नाच सकता है, नाच का कोई विरोध नहीं है। नाचने वाला मजिस्ट्रेट हो सकता है, कोई कंट्राडिक्शन नहीं है इसमें कहीं कोई।
कि मेरे पास दस लाख रुपये हैं, तो मैं कैसे नाच सकता हूं?
दस लाख रुपये हैं और नहीं नाच सकते, तो फिर कब नाचेंगे? आदमी रुपये कमाता इसलिए है कि किसी दिन नाच सके। लेकिन गधेपन का कोई अंत नहीं है। रुपये इकट्ठे हो जाते हैं, नाचना भूल जाता है। तो वह कहता है, मेरे पास इतने रुपये हैं, मैं कैसे नाचूं?
रुपये किसलिए इकट्ठे किए? इसीलिए कि किसी दिन वह क्षण आ जाएगा कि कोई रोक-टोक नहीं रहेगी, मन मुक्त होगा, नाच सकेंगे। अब नाचने का वक्त आ गया तो रुपये छाती पर रख कर बैठे हैं कि वह वजन ज्यादा है, नाचें कैसे?
तो जो ऐसे यहां बिना कुर्सी के भी कुर्सी पर बैठे हों, वे कुर्सियों पर चले जाएं। कुर्सियों पर कोई भूल से बैठ गए हों और नाच सकते हों, वे नीचे आ जाएं। देखने वाले सब कुर्सियों पर होंगे, नीचे कोई नहीं होगा। एक भी आदमी बीच में बाधा बन जाता है। उससे ताल टूट जाता है। जैसे ही पंद्रह मिनट में आप गहरे मौन में प्रवेश करते हैं और कीर्तन में, ये इतने लोग अलग-अलग नहीं रह जाते, एक धारा हो जाती है, एक रिदम, एक गति हो जाती है। उस गति में सब संयुक्त हो जाते हैं। उसमें एक भी व्यक्ति बेईमानी से बीच में खड़ा रहे, तो वह रिदम को तोड़ता है, गति को तोड़ता है।
तो अपने साथ आप कुछ भी करें, कृपा कर दूसरों को नुकसान न पहुंचे, इसका तो ध्यान रखना ही चाहिए। तो वहां से हट जाएं। और दूर-दूर फैल कर खड़े होना है। पास-पास खड़े होना धोखा देना है। वह नाच से बचने की तरकीब है। आप दूर-दूर फैल जाएं, ताकि मुक्त मन से नाच सकें।
दूसरी बात, पंद्रह मिनट तक कीर्तन, फिर पंद्रह मिनट तक मुक्त-भाव। कीर्तन बंद हो जाएगा, धुन चलती रहेगी। फिर धुन के साथ बढ़ते चले जाएं।
तीस मिनट के बाद मैं आपको माथे को रगड़ने को कहूंगा।
कुछ प्रश्न उस संबंध में आए हैं। एक तो यह कि अगर दाएं हाथ से रगड़ने में तकलीफ हो?
अगर ऐसी तकलीफ हो तो बाएं से रगड़ सकते हैं। ऐसी कोई अड़चन नहीं है। बाएं से रगड़ सकते हैं, अगर दाएं हाथ से किसी को रगड़ने में तकलीफ होती हो तो बाएं से रगड़ सकते हैं। दूसरी बात, अगर किसी को ऐसा लगता हो कि बहुत जोर से रगड़ने से अड़चन होती है, तो इतने जोर से नहीं रगड़ना है कि घाव बन जाए या चमड़ी छिल जाए, इतने जोर से नहीं रगड़ना है। आप अपना-अपना हिसाब कर लें। क्योंकि सब की अपनी-अपनी चमड़ी की मोटाई है। आप अपना हिसाब कर लें कि कितना रगड़ना है। फिर रगड़ने की भी अपनी-अपनी ताकत है। वह आप अपना तय कर लें। चमड़ी न छिल जाए, इतना ध्यान रखें।
और किसी मित्र ने पूछा है कि आधा मिनट में ही प्रक्रिया शुरू हो जाती है, तो क्या मिनट तक जारी रखना है?
प्रक्रिया शुरू हो जाए, जब आपको लगे कि भीतर का द्वार खुलना शुरू हुआ, तो छोड़ सकते हैं। कोई एक मिनट जरूरी नहीं है। एक मिनट सिर्फ इसलिए कि सबकी प्रक्रिया शुरू हो जाए। किसी को अगर मिनट में भी ऐसा लगे कि अभी कुछ अधूरा है, तो वह दो मिनट तक जारी रख सकता है। एक मिनट तो हम सबके लिए उपयोग कर रहे हैं। किसी को ऐसा लगे कि कुछ हो रहा है और मिनट समाप्त हो गया, तो वह और एक मिनट जारी रख सकता है, उसमें कोई बाधा नहीं है। वह आप पर निर्भर है।
फिर गहरे मौन में तीसरा चरण हम बिताएंगे। उस क्षण जो भी अनुभव हों, उन्हें बड़े आनंद से देखते रहें, साक्षी बने रहें।
अंत में फिर एक मिनट के लिए माथे को रगड़ना है। फिर दोनों हाथ आकाश की तरफ उठा कर आंख खोल देनी है। आकाश आपकी आंख में झांक सके, आप आकाश में झांक सकें, तो एक गहरा मिलन, एक कम्यूनियन घटित होता है। और फिर परमात्मा को धन्यवाद देना है। जब आप हाथ उठा कर आकाश में झांकेंगे, उस वक्त जो भी हृदय में तरंग आनंद की आ जाए, उसे खुले मन से प्रकट करना है, पूरे आनंद से प्रकट करना है। किसी का उस वक्त हंसने का मन हो, आनंद के आंसू बह जाएं, डोलने का मन हो, नाचने का मन हो, उस क्षण जो भी हो, एक दो-तीन मिनट के लिए पूरे मुक्त-भाव से अपनी अभिव्यक्ति कर लेनी है। फिर धन्यवाद देकर...
जो लोग भी देखने को हों वे हट जाएं और जो लोग करने को हों वे दूर-दूर फैल जाएं।
(पहले चरण में पंद्रह मिनट संगीत की धुन के साथ कीर्तन चलता रहता है।)
गोविंद बोलो, हरि गोपाल बोलो
गोविंद बोलो, हरि गोपाल बोलो
गोविंद बोलो, हरि गोपाल बोलो...
राधा रमण हरि गोपाल बोलो
राधा रमण हरि गोपाल बोलो
राधा रमण हरि गोपाल बोलो...
(दूसरे चरण में पंद्रह मिनट सिर्फ धुन चलती रहती है और भावों की तीव्र अभिव्यक्ति में रोना, हंसना, नाचना, चिल्लाना आदि चलता रहता है। तीस मिनट के बाद तीसरे चरण में ओशो पुनः सुझाव देना प्रारंभ करते हैं।)
शांत हो जाएं, आवाज छोड़ दें। आंख बंद कर लें। लेट जाएं, बैठ जाएं या खड़े रहें, जैसा भी मन हो। आंख बंद कर लें। आवाज छोड़ दें, नाचना छोड़ दें। शक्ति जग गई है, अब उसे भीतर काम करने दें। चुप हो जाएं। आंख बंद कर लें। बिलकुल चुप हो जाएं। आंख बंद कर लें। दायां हाथ माथे पर रख लें, दोनों आंखों के बीच और दोनों तरफ, ऊपर-नीचे रगड़ें...भीतर कोई द्वार खुलना शुरू हो जाएगा...रगड़ते ही भीतर बहुत प्रकाश फैलना शुरू हो जाएगा...रब योर राइट हैंड पाम ऑन दि फोरहेड...
हाथ रगड़ते ही भीतर अनेक अनुभव उठने शुरू हो जाएंगे...रगड़ें, हाथ रगड़ते ही भीतर बहुत कुछ होना शुरू हो जाएगा...रगड़ें...
रब योर राइट हैंड पाम ऑन दि फोरहेड--साइडवेज, अप एंड डाउन...मेनी एक्सपीरिएंसेज विल बिगिन टु हैपन...रब इट...
बस अब हाथ छोड़ दें और मुर्दे की भांति हो जाएं...हाथ छोड़ दें...नाउ स्टॉप रबिंग...मुर्दे की भांति हो जाएं...परमात्मा के द्वार पर पड़े हैं सब समर्पण कर...
भीतर प्रकाश ही प्रकाश फैल जाएगा, अनंत प्रकाश...भीतर प्रकाश ही प्रकाश फैल जाएगा, ऐसा प्रकाश जो कभी नहीं जाना...भीतर प्रकाश ही प्रकाश का सागर लहराने लगेगा...प्रकाश ही प्रकाश, प्रकाश ही प्रकाश...
प्रकाश ही प्रकाश के सागर में खो गए...तन-मन का रोआं-रोआं प्रकाश से भर जाएगा...प्रकाश ही शेष रह जाएगा...लाइट, मोर लाइट, इनफिनिट लाइट, ओनली लाइट रिमेन्स...प्रकाश ही प्रकाश फैल गया, अनंत प्रकाश फैल गया...
अनुभव करें और इस प्रकाश के साथ एक हो जाएं...अनुभव करें और इस प्रकाश के साथ एक हो जाएं...बी वन विद दिस लाइट, बी वन विद दिस लाइट, फील दि लाइट एंड बी वन विद दिस...
प्रकाश ही प्रकाश...खो गए उस प्रकाश में...कुछ शेष नहीं बचा, सिर्फ प्रकाश ही प्रकाश...प्रकाश के पीछे-पीछे ही आनंद की छाया आने लगती है, आनंद की धारा आने लगती है...प्रकाश के साथ ही साथ आ जाता है आनंद...आनंद से भर जाएं, आनंद से भर जाएं, आनंद के साथ एक हो जाएं...आनंद से भर जाएं, आनंद के साथ एक हो जाएं...
ब्लिस फॉलोज लाइट एज ए शैडो...नाउ बी ब्लिसफुल, बी फिल्ड विद इट, बी वन विद इट...फील दि ब्लिस...आनंद को अनुभव करें, आनंद से भर जाएं, आनंद से एक हो जाएं...समस्त तन-प्राण आनंद से आंदोलित हो उठा है...समस्त अस्तित्व आनंद से आंदोलित हो उठा है...आनंद से भर जाएं, एक हो जाएं...
फील दि ब्लिस...दि होल एक्झिस्टेंस हैज बिकम ब्लिस...फील इट, बी फिल्ड विद इट, बी वन विद इट...
और आनंद के पीछे-पीछे ही परमात्मा की उपस्थिति प्रतीत होने लगती है...वही मौजूद है चारों ओर, वही घेरे हुए है, बाहर-भीतर वही है...आती श्वास में वही, जाती श्वास में वही...अनुभव करें, उसकी उपस्थिति से भर जाएं...
दि एक्सपीरिएंस ऑफ दि ब्लिस इज़ फालोड बाइ डिवाइन पे्रजेंस...नाउ फील दि डिवाइन आल अराउंड--इनसाइड, आउटसाइड...नाउ फील दि प्रेजेंस, बी फिल्ड विद इट, बी वन विद इट...प्रभु की उपस्थिति अनुभव करें, वही चारों ओर मौजूद है, वही घेरे हुए है...वही है जन्म, वही है मृत्यु...केवल प्रभु ही है...अनुभव करें, अनुभव करें, अनुभव करें, अनुभव करें...
इस परम अनुभव के क्षण में, एक झटके से शरीर के बाहर हो जाएं। जैसे कोई अपने वस्त्रों को निकाल कर बाहर हो जाए। जैसे कोई अपने घर से निकले और बाहर हो जाए। एक छलांग लें, एक झटके से शरीर के बाहर हो जाएं। इस समय बाहर हो सकते हैं। और अपने शरीर को लौट कर देखें--वह पीछे मुर्दे की भांति पड़ा है।
नाउ टेक ए जंप, दिस इज़ दि मोमेंट एंड दि जंप कैन बी टेकेन, बी आउट ऑफ योर बॉडी। जस्ट टेक ए जंप एंड बी आउट ऑफ योर बॉडी। देन लुक बैक--दि बॉडी इज़ लाइंग डेड। एंड वंस यू हैव नोन दैट दि बॉडी इज़ सेपरेट फ्रॉम यू, यू विल नेवर फॉरगेट। जान लें एक बार कि शरीर अलग है, शरीर अलग है मुझसे, और फिर यह कभी नहीं भूला जाता है। एक झटके में, हिम्मत करें, शरीर को छोड़ कर बाहर खड़े हो जाएं। ये क्षण हैं, जरा सा साहस, और बाहर हो सकते हैं। और अपने शरीर को देखें--बैठा हुआ, पड़ा हुआ, खड़ा हुआ, मुर्दे की भांति--और आप अलग हो गए हैं।
शरीर से स्वयं को अलग जान लेना ही ज्ञान है...शरीर से स्वयं को अलग जान लेना ही परमात्मा से स्वयं को एक जान लेना है...
टु नो दैट दि बॉडी इज़ सेपरेट इज़ दि सुप्रीम नालेज...एंड टु नो दैट दि बॉडी इज़ सेपरेट, इज़ टु नो दैट यू आर वन विद दि डिवाइन...
एक छलांग, झटके से बाहर हो जाएं...सोचें नहीं, झटके से बाहर हो जाएं...और लौट कर देखें--शरीर मुर्दे की भांति पड़ा हुआ है...
चारों ओर परमात्मा मौजूद है और हम उसके सागर में खो गए, जैसे बूंद सागर में खो जाए...जैसे महासूर्य के प्रकाश में कोई छोटा सा दीया जलाए और उसकी ज्योति सूर्य के प्रकाश में खो जाए, ऐसे ही हम उसकी मौजूदगी में खो गए...जैसे हमारी श्वास निकलती है शरीर के बाहर और अनंत आकाश में खो जाती है, ऐसे ही हम निकले स्वयं के बाहर और अनंत परमात्मा में खो गए...प्रकाश ही प्रकाश है, आनंद ही आनंद है और चारों ओर परमात्मा मौजूद है...
अब दोनों हाथ ऊपर उठा लें, आंखें ऊपर उठा लें, आंखें खोलें, आकाश को देखें और आकाश को आपकी आंखों में झांकने दें...नाउ रेज़ योर बोथ हैंड्स टुवर्ड्स दि स्काई, ओपन योर आइज, लुक इनटु दि स्काई एंड लेट दि स्काई लुक इनटु यू...और जो भी आनंद की लहर भीतर आती हो उसे प्रकट करें...जो भी आनंद का भाव उठता हो उसे समग्र रूप से प्रकट करें...
नाउ एक्सप्रेस योर ब्लिस, नाउ एक्सप्रेस योर एक्सटैसी...हंसना हो, रोना हो, चिल्लाना हो आनंद में, नाचना हो, जो भी भाव आ जाए उसे प्रकट कर दें...रोकें नहीं, जो भी भाव हो उसे फैल जाने दें...एक्सप्रेस योर ब्लिस एनी वे इट हैपन्स टु यू...हंसें, नाचें, चिल्लाएं, रोएं, जो भी भाव आता हो उसे पूरी शक्ति दे दें और प्रकट करें...
अब दोनों हाथ जोड़ लें, उसे धन्यवाद दे दें। आदमी अकेले से तो कुछ न होगा, प्रभु की अनुकंपा चाहिए, उसका सहारा चाहिए। दोनों हाथ जोड़ लें, चरणों में सिर झुका दें उसके। नाउ पुट योर बोथ हैंड्स इन नमस्कार पोज एंड पुट योर हेड इनटु हिज़ फीट।
और हृदय के रोएं-रोएं को कहने दें, धड़कन-धड़कन को: प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है। दाइ ग्रेस इज़ इनफिनिट, दाइ ग्रेस इज़ इनफिनिट, दाइ ग्रेस इज़ इनफिनिट। प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है।
दो-चार गहरी श्वास ले लें और ध्यान से वापस लौट आएं। हमारी सुबह की बैठक पूरी हो गई। दो-चार गहरी श्वास ले लें और ध्यान से वापस लौट आएं। हमारी सुबह की बैठक पूरी हो गई।